________________
३२
गाथा समयसार
जो वस्तु जिस द्रव्य में और जिस गुण में वर्तती है, वह अन्य द्रव्य में या अन्य गुण में संक्रमण को प्राप्त नहीं होती। अन्यरूप से संक्रमण को प्राप्त न होती हुई वह वस्तु अन्य वस्तु को कैसे परिणमन करा सकती है ?
आत्मा पुद्गलमय कर्म के द्रव्य व गुण को नहीं करता । उन दोनों को न करता हुआ वह आत्मा उनका कर्ता कैसे हो सकता है ?
(१०५-१०६) जीवम्हि हेदुभूदे बंधस्स दु पस्सिदूण परिणाम। जीवेण कदं कम्मं भण्णदि उवयारमेत्तेण ॥ जोधेहिं कदे जुद्धे राएण कदं ति जंपदे लोगो। ववहारेण तह कदं णाणावरणादि जीवेण ।। बंध का जो हेतु उस परिणाम को लख जीव में। करम कीने जीव ने बस कह दिया उपचार से॥ रण में लड़े भट पर कहे जग युद्ध राजा ने किया।
बस उसतरह द्रवकर्म आतम ने किये व्यवहार से॥ जीव के निमित्तभूत होने पर कर्मबंध का परिणाम होता हुआ देखकर 'जीव ने कर्म किया' - इसप्रकार मात्र उपचार से कह दिया जाता है।
जिसप्रकार योद्धाओं के द्वारा युद्ध किये जाने पर राजा ने युद्ध किया' - इसप्रकार लोग कहते हैं; उसीप्रकार ज्ञानावरणादि कर्म जीव ने कियाऐसा व्यवहार से कहा जाता है।
- (१०७-१०८) उप्पादेदि करेदि य बंधदि परिणामएदि गिण्हदि य। आदा पोग्गलदव्वं ववहारणयस्स वत्तव्वं ।। जह राया ववहारा दोसगुणुप्पादगो त्ति आलविदो। तह जीवो ववहारा दव्वगुणुप्पादगो भणिदो।।
ग्रहे . बाँध परिणमावे करे या पैदा करे। पुद्गल दरव को आतमा व्यवहारनय का कथन है।