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कर्ताकर्माधिकार परद्रव्य की पर्यायरूप परिणमित नहीं होता; उसे ग्रहण नहीं करता और उसरूप उत्पन्न नहीं होता। - ज्ञानी पुद्गल कर्म के अनन्तफल को जानते हुए भी परमार्थ से परद्रव्य की पर्यायरूप परिणमित नहीं होता, उसे ग्रहण नहीं करता और उसरूप उत्पन्न नहीं होता।
इसीप्रकार पुद्गल द्रव्य भी परद्रव्य की पर्यायरूप परिणमित नहीं होता, उसे ग्रहण नहीं करता और उसरूप उत्पन्न नहीं होता; क्योंकि वह भी अपने ही भावों से परिणमित होता है।
(८० से ८२) जीवपरिणामहे, कम्मत्तं पोग्गला परिणमंति। पोग्गलकम्मणिमित्तं तहेव जीवो वि परिणमदि।। ण वि कुव्वदि कम्मगुणे जीवो कम्मं तहेव जीवगुणे। अण्णोण्णणिमित्तेण दु परिणाम जाण दोण्हं पि॥ एदेण कारणेण दु कत्ता आदा सएण भावेण। पोग्गलकम्मकदाणं ण दु कत्ता सव्वभावाणं ।।
जीव के परिणाम से जड़कर्म पुद्गल परिणमें। पुद्गल करम के निमित्त से यह आतमा भी परिणमें ॥ आतम करे ना कर्मगुण ना कर्म आतमगुण करे। पर परस्पर परिणमन में दोनों परस्पर निमित्त हैं। बस इसलिए यह आतमा निजभाव का कर्ता कहा।
अन्य सब पुद्गलकरमकृत भाव का कर्ता नहीं। जीव के परिणामों का निमित्त पाकर पुद्गल (कार्माण वर्गणाएँ) कर्मरूप परिणमित होते हैं तथा जीव भी पौद्गलिककर्मों के निमित्त से परिणमन करता है।
यद्यपि जीव कर्म के गुणों को नहीं करता और कर्म जीव के गुणों को