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गाथा समयसार करम के परिणाम को नोकरम के परिणाम को।
जो ना करे बस मात्र जाने प्राप्त हो सद्ज्ञान को। जो आत्मा इस कर्म के परिणाम को तथा नोकर्म के परिणाम को करता नहीं है, मात्र जानता ही है; वह ज्ञानी है।
(७६ से ७९) ण विपरिणमदिणगिण्हदि उप्पज्जदिण परदव्व पज्जाए। णाणी जाणंतो वि हु पोग्गलकम्मं अणेयविहं ।। ण विपरिणमदिण गिण्हदि उप्पज्जदिण परदव्वपज्जाए। णाणी जाणतो वि हु सगपरिणामं अणेयविहं ।। ण विपरिणमदिण गिण्हदिउप्पज्जदिण परदव्वपज्जाए। णाणी जाणंतो वि हु पोग्गलकम्मप्फलमणंतं ।। ण विपरिणमदिण गिण्हदि उप्पज्जदिण परदव्वपज्जाए। पोग्गलदव्वं पि तहा परिणमदि सएहिं भावहिं।।
परद्रव्य की पर्याय में उपजे ग्रहे ना परिणमें। बहुभाँति पुद्गल कर्म को ज्ञानी पुरुष जाना करें। परद्रव्य की पर्याय में उपजे ग्रहे ना परिणमें। बहुभाँति निज परिणाम सब ज्ञानी पुरुष जाना करें। परद्रव्य की पर्याय में उपजे ग्रहे ना परिणमें। पुद्गल करम का नंतफल ज्ञानी पुरुष जाना करें। परद्रव्य की पर्याय में उपजे ग्रहे ना परिणमें।
इस ही तरह पुद्गल दरव निजभाव से ही परिणमें ज्ञानी अनेकप्रकार के पुद्गल कर्म को जानता हुआ भी निश्चय से परद्रव्य की पर्यायरूप परिणमित नहीं होता, उसे ग्रहण नहीं करता और उसरूप उत्पन्न नहीं होता।
ज्ञानी अनेकप्रकार के अपने परिणामों को जानता हुआ भी निश्चय से