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गाथा समयसार अन्य करता है और उससे अन्य भोगता है - ऐसा जिसका सिद्धान्त है; वह जीव मिथ्यादृष्टि है और अरहन्त के मत के बाहर है, अनाहत मतवाला है। - ऐसा जानना चाहिए।
(३४९ से ३५५) जह सिप्पिओ दुकम्मं कुव्वदिण यसोदुतम्मओहोदि। तह जीवो वि य कम्मं कुव्वदि ण य तम्मओ होदि। जह सिप्पिओदुकरणेहिंकुव्वदिणयसोदुतम्मओहोदि। तह जीवो करणेहिं कुव्वदि ण य तम्मओ होदि। जह सिप्पिओदुकरणाणि गिण्हदिणसोदुतम्मओहोदि। तह जीवो करणाणि दु गिण्हदि ण य तम्मओ होदि। जह सिप्पिदुकम्मफलं भुंजदिण सो दुतम्मओ होदि। तह जीवो कम्मफलं भुंजदि ण य तम्मओ होदि।। एवं ववहारस्स दु वत्तव्वं दरिसणं समासेण । सुणु णिच्छयस्स वयणं परिणामकदं तु जं होदि। जह सिप्पिओ दुचेर्सेकुव्वदि हवदि य तहा अणण्णो से। तह जीवो वि य कम्मं कुवदि हवदि य अणण्णो से।। जह चेटुं कुव्वंतोदु सिप्पिओ णिच्चदुक्खिओ होदि। तत्तो सिया अणण्णो तह चेटुंतो दुही जीवो।
ज्यों शिल्पि कर्म करे परन्तु कर्ममय वह ना बने। त्यों जीव कर्म करे परन्तु कर्ममय वह ना बने || ज्यों शिल्पि करणों से करे पर करणमय वह ना बने। त्यों जीव करणों से करे पर करणमय वह ना बने॥ ज्यों शिल्पि करणों को ग्रहे पर करणमय वह ना बने। त्यों जीव करणों को ग्रह पर करणमय वह ना बने॥ ज्यों शिल्पि भोगे कर्मफल तन्मय परन्तु होय ना। त्यों जीव भोगे कर्मफल तन्मय परन्तु होय ना॥