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- " महाजन वंशमुक्तावली” के अंतमें खरतड गच्छ की पट्टावली प्रसिद्ध कीगई है उसमें जिनपत्तिसूरि की हकीगत में लिखा है कि, इनों के समय चित्रावाल गच्छी चैत्यवासि जगश्चंद्र सूरिने वस्तुपाल तेजपाल की भक्तिसे क्रिया उद्धार करा । तप करणे से चितोड के राणाजीने सं० १९८५ में " तपा" विरुद दिया । वस्तुपाल तेजपाल लहुडी ज्ञात ओसवाल, पोरवाल, श्रीमालियों में करणे वाला माया का अखुड भंडारीने इनोंका नंदी महोत्सव करा । जिसने जगच्चंद्र सूरि की सामाचारी कबूल करी उस गरीब को श्रीमंत बणाते गया ।
इस प्रकार वस्तुपाल तेजपाल की हयाति से बहुत पीछे तक सभी विव्दानोंका दसा बीसा भेद के संबंध में बिलकुल एक मत है।
इन प्रमाणों के अंतर विवरणों में अंतर है तो भी " वस्तुपाल तेजपाल विधवा जात पुत्र होने से महाजन ज्ञातियों में दसा बीसा का भेद उत्पन्न हुआ इस संबंध में सभी की एक वाक्यता है"।
सं० १२९८ में वस्तुपाल स्वर्गवासी हुए और तेरहसो आठ [ १३०८ ] में तेजपाल . का देहांत हुआ । इन के पश्चात् ५३ वे वर्ष में वढवाण में प्रबंध चिंतामणी की समाप्ति हुई, सं० १३६१ में। यह बिलकुल निकटवर्ति काल है ।