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दूसरे उस समय वस्तुपाल तेजपाल के पुत्रादि वंशज हयात थे ओर यह बात घर घर में मालुम होना संभव नहीं थी, परंतु इस में दशा वीसा का उल्लेख क्यों नहीं किया ? यह प्रश्न उपस्थित होता है। इसके उत्तर में अनुमानतः यही कहना होगा कि उक्त ग्रंथ प्रबंध-संग्रह है, नकि ज्ञातियों का इतिहास । दूसरे उस समय इस भेद को तड ( तट ) का रूपही होगा
और उसका समझोता होनेकी लोगोंको आशा होगी। वस्तुपाल तेजपाल जैसी प्रधान राजमान्य यशस्वी तथा दानवीर व्याक्त को उनके अंतके ५३ वर्ष पीछे ही असत्य कलंक लगना सहज नहीं है; अतएव उक्त प्रमाणों से जो दसा वीसा के भेदका कारण निश्चित हुआ है वह बिलकुल यथार्थ है।
- मुर्तियों के लेखों से यदि देखा जाये तो स. ११३३ के पहिले दसा वीसा का भेद होना मालूम होता है । इतिहास हमे दिखता है कि, पाटण के गजदार में महाजनों की बहुत चलती थी और उन्हें वहां बहुत मान सन्मान मिलता था । वहां पर राज्य में कर्ता-हर्ता महाजन ही थे । वह समय सिद्धराज तथा कुमारपाल का शासन काल था और उसी समय मारवाड आदि प्रांतों से महाजन लोग आकर गुजरात में बसे हैं। यदि दसा बीसा का भेद गुजरात से बाहर और कहीं पडा होता तो मारवाड, मालवा, से गुजरात में जाकर बसने वाले लोगों में भी वह पाया जाता; परंतु