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अंत में कवि लिखता है कि:"श्रावक जन सहु आगरे म्हें, चरित्र रच्यो रसालोरे, लघु प्रबंध वस्तुपाल तणो, जोई रास रच्यो सुविशालरे.
इससे ज्ञात होता है कि, यह रास लोकाग्रह से सत्यपूर्ण रचा गया है।
सं. १५७८ में सौभाग्य नंदिसूरिकृत विमल-चरित्र में लिखा है किःप्राग्वाटाद्या विंशति वींशोपका ज्ञातयो भवंत्यस्मात् । दशते स्त्री संग्रहे मद्यादिनी वृत्तितो दशवै ॥६१ ॥ उभयगुणा रोपण तो विंशोपका विशंति स्फार तेषां । एकतग रोपणात्तस्मादर्ध मेषामनाचरे ॥ ६२ ॥
व्यवस्था मिति ये मां लापयति अतः परं। क्षेप्यास्त लघुशाखायां वृद्ध शास्त्रीय पंक्तितः ॥ ६५ ॥
अर्थः-इसमें से पोरवाड आदि ज्ञातियों में वीसा ज्ञातियां हुई। जिन्होंने परस्त्री ग्रहण की वे दसा तथा मद्य आदिक हलका धन्दा करने वाले भी दसा कहाये । मातापिता के दोनों पक्ष जिसके पूर्ण हों वह वीसा अथवा जो उत्तम कुलशील का हो वह वीस बिसवा और एकही गुणका हो वह अर्ध एवं दसा कहाया * * *
इसके पश्चात् जो मनुष्य इस व्यवस्था का भंग करे वह बृद्ध-शाखा में से लघुशाखा में डाल दिया जावे।