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वीस वशा नाह वणिक, उतावलियों जे थाए,
, , वनिता शू वहे वाये, वळी वीशवसा ते वणिक नहीं घड्यो रावले जाणियो! जे सस्य तजे शामल कहे, वीश वशा नहीं वालियो ।
जैन साधुओं को "वीस विश्वा जीव दया प्रति पालक" लिखा जाता है। अर्थात उत्तम कुलवान, संपूर्ण योग्यता वाला वह वीस विलवा और कम योग्यता वाला कम विसवा का कहा जाता है। बहुत पुरातन काल से लेखों में वीस विसवा का प्रयोग मिलता है।
राजा जयचंद्र के यज्ञ में निमंत्रण किये हुए कान्यकुब्ज ब्राह्मणों को उनकी योग्यतानुसार एक विसवा से वीस विसवा तक उन को स्थान दिया गया था ।
जब मनुष्यों में वा कोई वस्तुओं में उन के गुणानुसार तुलनात्मक विचार किया जाता है तब कहा जाता है कि " वह मनुष्य वा वस्तु उस से वीस विसवा वा बीसी है या उन्नीस विसवा या उन्नीसी है।"
महाजनो में भी दशा वीसा का भेद इसी अर्थानुलार माना गया होना चाहिये । 'वीसा' सर्वोत्तम ‘दशा' निम्न श्रेणि का दर्शक होना उक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है । अब उसका भेदा भेद क्यों हुआ यह बताने के पहिले उम के समय का निर्णय करने की आवश्यकता है।