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यह समय निर्णय करने के वास्ते जैन श्रावकों ने हमारे वास्ते बहुत कुछ साधन उपलब्ध कर रक्खे हैं। जैन मंदिरों में पाषाण तथा धातु प्रणित मूर्तियों पर प्रतिष्ठा करनेवाले का नाम, उस की दो तीन पीढीयों के पूर्वजों के नाम, उन की ज्ञाति का नाम, जहां प्रतिष्ठा की हो वहां का नाम, उन के निवास स्थान का नाम तथा संवत मिति आदि कुरा हुआ मिलता है । इस के अतिरिक्त प्रतिष्ठा करने वाले धर्म गुरु उन का गच्छ आदि का गाम दिया हुआ होता है । महाजनों के इतिहास लेखक को यह बहुत अच्छा साधन है । दसा वीसा के भेद होने के समय निर्णय को यही एक मात्र उपयोगी तथा विश्वसनीय साधन उपलब्ध है। इन लेखों में ज्ञाति के उल्लेख की जगह कहीं दसा वीसा और कहीं वृद्ध लघु शाखा ऐसा लिखा हुआ है। इन लेखों को देखने से मालुम होता है कि, अर्वाचीन एक दो शताब्दियों के प्रायः सभी लेखों में इसा, वोसा, वा वृद्ध, लघु, शाखा का उल्लेख है परंतु इस के पहिले के सभी प्राचिन लेखों में इस भेद का उल्लेख नहीं मिलता । इस वास्ते अर्वाचीन लेखों को छोड प्राचीन लेखों का ही विचार आगे किया है; किन्तु पाठकों के वाचनार्थ नमुने के कुछ लेख आगे दिये गये हैं।