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४७ पंडित ज्वालाप्रसादजी मिश्र लिखित “जाति भास्कर" में लिखा हैं किः-“ गोडवाड देश में पद्मावती थी;" परंतु इस सम्बन्ध में कोई विश्वसनीय प्रमाण अभी उपलब्ध नहीं हुआ है।
इस समय यदि देखा जाये तो एटा आदि गांवों में पद्मावती पोरवाडों की बस्ती अधिक संख्या में पायी जाती है । ये गांव महुवा से अधिक दूरी पर नहीं था।
पढ्यावती पोरवाडों के उप्तत्ति की एक और भी दंतकथा प्रचलित है। और वह वस्तुपाल तेजपाल से उपस्थित “दसा" के भैद से भी अधिक गर्णीय है। कोई धनाढ्य पोरवाड का दुर्भाग्य वश धन नाश होने के पश्चात किसी नीच कुलात्पन्ना कन्याको भाग्यवती देखकर उस श्रीमान ने उस कन्या से संबंध किया। उस स्त्री के भाग्य से उसका गत वैभव उसे पूनश्च प्राप्त हुआ। इनकी संतान तथा इन के पोरवाड साथी उस स्त्री के “पद्मावती” नामके कारण " पद्मावती पोरवाड" कहाये । इन लोगों के विवाह के समय रापी ( चमारों का ओजार ) का उपयोग करते हैं, यह इसी बात का प्रमाण माना जाता है। इस व्यंग पूर्ण कथा में द्वष के अतिरिक सत्यताका प्रमाण प्रतीत नहीं होता। एटा के उक्त ज्ञातीय वकील सो से पत्र व्यवहार किया था परंतु उत्तर न मिला। विमल चरित्र में इन ज्ञाति भेदों का अत्युत्तम निर्णय किया है, और वह यथार्थ प्रतीत होता है।