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४८ " येषु स्थानेषु ये येषु वासिनं बणिजाः स्थिताः। तेषां तदयटकेन ज्ञाति ख्यातेव भूतले.” ॥
अर्थात् जो वणिक लोग जिस स्थान में जा वसे वे उसी स्थान की अटक से पहचाने गये।
पोरवाडों की वस्ती गुजरात, मारवाड, मालवा, आबूका निकट वर्ती प्रदेश और भारत के अन्य प्रांतों में है। इन में से सौराष्ट्रीय तथा कपोल पोरवाड वैष्णव हैं। जांगला मुख्यतः जैन है। पद्मावती और शुद्ध पारेवाडों में जैन वैष्णव दोनों धर्म के पालनेवाले हैं। सवाई माधवपुर के तरफ भी पोरवाड हैं और वे अपने को अठ्ठाव से बताते हैं; और अपनी उप्तत्ति दसा वीसा भेद की उप्तत्ति के समय से रेखांकित करते हैं।
____ यहां तक तो प्रांत विभाग, निवास स्थान भिन्नता आदि कारणों से प्राग्वाटों में--पारेवाडों में भेद होना पाया गया परंतु गुजरात के सेनापति वस्तुपाल तेजपाल के समय में एक नया वादग्रस्त प्रश्न उपस्थित हुआ और उसी कारण केवल पारेवाडों में ही नहीं किन्तु गुज गत मारवाड निवासी महाजनों की ८४ * ही ज्ञातियों में दसा वीसा का भेद
® चौरासी महाजन शातियों की नामावलीः
(प्रतिपन्नपाली ) श्रीमाली (-प्रकट पताप) पौरुआड ( अरडक मल्ल ) ओसवाल । ( भला दीसई ) डाँसावाल । डीडु । हरसुरा, वघेरवाल भाभूखंडा, मेडतवाल दाहिण, सुराणा, खंडेरेवाल, कथमटिआ, कोटावाल