________________
कारणों से इन लोगों के चोपडे इतिहास के लिये निरुपयोगी जैसे हैं। यजमानों से धन जबरन खीचनेके कारण कई लोगोंने इन्होंके चोपडे जल देवता-स्तृप्यतु भी कर दिये । यदि इन लोगोंको अपना अस्तित्व रखना है तो इन्हों को चाहिये कि ये समयानुकुल साहित्य की परिपूर्ति करें। इतिहास के नाम पर गपोडों से संतुष्ट होने का अब समय नहीं है ।
प्रमाणभूत और विश्वसनीय इतिहास केवल शिलालेख, ताम्रपत्र, ऐतिहासिक काव्य, सनदें तथा पत्र व्यवहार
और पुराने कागद पत्रों से ही मिल सकता हैं और इन्हीं साधनों का इस पुस्तक के लेखन में उपयोग किया गया है । कहीं पट्टावलियोंका तथा पुराने ग्रंथों का भी आधार लिया गया है। इन में से कुछ कुछ प्रमाण विश्वास पात्र न भी हों परंतु अन्य इनसे अधिक विश्वास पात्र प्रमाण उपलब्ध न हों वहां तक इन्हीं को प्रमाण भूत क्यों न माने जावें ?
प्रस्तुत कार्य में रायबहादुर महा महोपाध्याय गौरीशंकरजी ओझा साहेब की कृपासे तथा श्री १००८ श्री मुनि ज्ञानसुंदरजी महाराज की कृपासे मुझे बहुत ऐतिहासिक सामत्री उपलब्ध हुई तथा " श्रीमाली [ वाणीया ] ओना ज्ञाति भेद" इस पुस्तक का भी मुझे बहुत उपयोग हुआ है अतएव इसके लेखक तथा प्रकाशक और उक्त दोनों महानुभावों को हार्दिक धन्यवाद देता हूं। इसके अतिरिक्त इस