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अर्थात् इन्होने ज्ञाति के इतिहास की बातें पुराणों पर से अथवा अन्य रीति से लोगों को प्रिय हो ऐसे रूपमें कल्पित बनाई हैं। इससे कोई भी गोर ब्राह्मणों के चोपडो में से कोई भी ज्ञाति की उती का सच्चा ऐतिहासिक विश्वसनीय प्रमाण नहीं मिलता । मध्य काल के इतिहास में वे कुछ मदत दे सकते हैं वा नहीं यह देखने से हम को बिलकुल निराश होना पडता है । एक तो इनों में साल संवत होते नहीं, अर्थात कौन पुरुष कब हुआ यह निश्चित नहीं होता । वैसे ही वारसाई हक्कों के कारण और सांसारिक परिवर्तन के कारण इन्हों के चोपड़ों की ऐसी भी अफरातफर हुई है कि, पानलो वर्ष पूर्व की हकीगत कोई भी गोर [ वही वाचक ] विश्वसनीय रीति से उपस्थित नहीं कर सकता । अपने यजमान से धन की
घाई करने को आधार रूप इतनीही दो चार पीढियों की थोडी बहुत माहियत इनों के पास होती है, और बाकी सब गपोडोंका खेल होता है । निकटवर्ती समय के इतिहास में भी ये लोग कुछ कम गोल माल नहीं करते । वारसा के झगडे के समय कई लोग इन वही वाचकों को न्याय मंदिरों में भी बुलवाते हैं । ऐसे समय इन के सच्चाई का भंडा फोड हुए बिना रहता नहीं । चोपडों के अक्षर आप लिखे खुदा पढे ऐसे होने से इनका गोल माल औरों के हाथ नहीं आता । वैसे ही अपना महत्व कम हो जाने के भय से ये लोग अपने चोपड़ों की नकल किसी को करने देते नहीं । इन सब