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गुजरात से आये होना चाहिये तथा इस कुल में पांव में सुवर्ण धारण करने की भी प्रथा होना चाहिये । उज्जेन के उपलब्ध कवाले गुजराती भाषा के हैं । उक्त बातें हमें बताती हैं कि श्रीमाल त्याग के पश्चात् प्राग्वाट ( पोरवाड ) लोक गुजरात तथा मारवाड मेवाड में जा बसे और वहां से फिर अन्य प्रांतों में गए।
मालवे में शाजापुर ग्राम के जैन मंदिर में एक श्वेत पाषाण की मूर्ति पोरवाड पंचों की बनाई हुई वि. सं. १५४२ की मिली है और देवास के श्री पार्श्वनाथ के मंदिर की एक शाम शांतिनाथ की मूर्ति सं. ११९१ की तथा एक छोटी वृषभनाथ की वि. सं. १५४८ की है परंतु इन पर के किसी के नाम नहीं पढे जाते । इसी मंदिर में पोरवाडों ने बनाई हुई अन्य छ मूर्तियां सं. १६८३ की एक ही दिन की बनी हुई प्रस्तुत हैं इससे प्रतीत होता है कि, मालवे में पोरवाडों का निवास वि. सं. १५४२ के पूर्व से है; परंतु पोरवाडों की मालवे की उपस्थिति का विश्वसनीय कोई प्रमाण वि. सं. १५४२ के पूर्व का अभि उपलब्ध न होने से इन लोंगों का इधर का आगमन-काल निश्चित होना बाकी रहा है ।
गोरोंके चोपडोंका भी इस कार्य में विचार किया गया है परंतु ज्ञातिके इतिहास के लिये वे बहुत उपयोगी नहीं हैं क्यों कि इन लोगों की योजना पिछले समय में हुई है।