________________
कार्य में मुझे सेकडों पुस्तक पुराणादि ग्रंथ शास्त्र पट्टावलियां आदि साधनों का भी बहुत उपयोग हुआ है और उनके लेखक व प्रकाशकों का भी में अनुग्रहित हूं।
यह पुस्तक पढकर पाठकों के मनपर इस ज्ञाति संबंधी कुछ प्रकाश पडे और पोरवाड ज्ञाति जनोंके अंतःकरण कुछ विशाल होकर अन्योन्य प्रांतों में बसने वाले पोरवाड भिन्न नहीं किंतु सब अपने ज्ञाति बंधु ही हैं ऐसी भावना उनमें प्रदीप होवे और ज्ञाति के अनिष्ट बंधनों को तोड़ने का तथा प्रचलित कुप्रथाओं को छोडने का मनोबल उन्हें प्राप्त होवे तो मेरा श्रम अशंतः तो भी सफल हुआ ऐसा मैं मानूंगा ।
.. इस पुस्तक के लेखन कार्य में मेरी सहधर्मिणी सौ० श्री कमलादेवीने मुझे बहुत सहायता दी है अतः इन्हें मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूं। ___ श्री सरदार प्रिंटिंग वर्कस, इन्दौरके चालक तथा मालकने भी इस पुस्तकी छपाई का कार्य बहुा उत्तमतासे समयपर समाप्त किया इस संबंध में वेभी धन्यवाद के पात्र हैं।
___ अंतमें उस सर्व साक्षी सर्वांतर्यामि परमेश्वर को अतिविनीत भावसे प्रणाम कर यह दी प्रस्तावना समाप्त करता हूं । इति शुभम् ।
देवास (सीनियर ), ).
भवदीय, तारीख २२ मार्च, सन १९३० इ. ठाकुर लक्ष्मण सिंह, चौधरी.