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________________ __ [३] हजारों बातें चरितानुवादकी मानते हैं तिसपरभी एक देवद्रव्यकी वृद्धिके चढावेको चरितानुवाद कहकर निषेध करना यह कितना बडा अन्याय है। __५८ विजयधर्मसूरिजी चढावे के रिवाज को गीतार्थ पूर्वाचार्यों की व संघकी आचरणा लिखते हैं, मानते हैं, तिसपर भी विधिवाद के प्रमाण मांगनेका आग्रह करके चरितानुवादके नामसे चढावेक रिवाजको निषेध करनेलगे, इसलिये मैंने विजयधर्मसूरिजीके परम पूज्य श्राद्धविधि ग्रंथकार के वाक्य से ही चढावे के रिवाज को विधिवादमें साबित करके बतलाया है, परंतु जब जिस बातमें पूर्वाचार्यों की आचरणा मान्य कर ली, तब उस बातमें विधिवादके या भाष्य, चूर्णि आदि आगमपञ्चाङ्गी के प्रमाणों को मांगनेका आग्रह करना न्याय विरुद्ध है, क्योंकि आचरणाकी बातमें तो इतिहास की दृष्टि से प्राचीनता या लाभ ही देखा जाता है. देवद्रव्यकी वृद्धि के लिये चढावा करनेका रिवाज बहुत प्राचीन कालसे चला आता है, और जिन मंदिर व तीर्थ क्षेत्रोंकी रक्षा करनेवाला, शासनका आधारभूत, महान् लाभका हेतु है. इसलिये विधिवाद के नामसे या आगम पञ्चाङ्गी के नाम से निषेध करना भारी भूल है। , ५९ औरभी देखो विधिवाद की क्रियातो भाव शुद्ध हो अथवा अशुद्ध हो कदाचित् मनके परिणाम बिगडजावे ( मलीनहोजावे ) तो भी देवसी राई प्रतिक्रमण, पडिलेहणा, रात्रि चौविहार, ब्रह्मचर्य पालन करना वगैरह क्रियाएं हमेशा नियमानुसार सर्व जगह पर अवश्यही करनेमें आती हैं, सो हमेशा नियमानुसार शुभत्रियाएँ करते करते परिणाम भी शुद्ध होजाते हैं और महान् लाभ मिलता है, परंतु परिणामों की मलीनतासे विधिवाद की क्रिया का व्यवहार भंगकरेंतो भगवान्की आज्ञाके विराधक होवें, बडा दोष आवे. इसलिये विधिवाद की क्रिया तो हमेशा करने में आती है और चरितानुवादको क्रिया तो विधिवादकी तरह व्यवहारसे हमेशा करनेमें नहीं आती, किन्तु कभी कभी पर्व विशेष अवसर आवे और भाव शुद्धहोवे, चढते उल्लास
SR No.032002
Book TitleDev Dravya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherNaya Jain Mandir Indore
Publication Year1920
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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