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________________ कि वे मकसीजीका झगडा निपटवाकर अपनी और अपने समाज की कीर्ति जगजाहिर करके मालव देश में पधारने की सार्थकता करलें. यह सौभाग्य की बात है कि अब आचार्य महाराज की प्रकृती अच्छी होगई है और वे विहार भी कर सकते हैं. हमें पूर्ण विश्वास है कि अन्य महाराजाओं के सदृश्य श्रीमंत गवालियर नरेश को भी प्रतिबोध देकर इस तीर्थकी आशातना दूरकर समाजका क्लेश मिटाकर ही आचार्य महाराज आगे विहार करेंगे कारण कि यह कार्य आपके गुरुमहाराजसरीखें प्रभावशाली एवं परोपकारी महात्मासे ही सुगमतापूर्वक हो सकता है. आप अन्त में अपने उच्च विचारोंका प्रमाण देते हुए लिखते हैं कि ऐसे हेंडबिल और ऐसी विनंतियां रद्दीकी टोकरी के ही स्वाधीन करने लायक गिनते हैं. आपको संघकी विनंती रद्दी की टोकरी के स्वाधीन करनेमें कुछभी संकोच नहीं हुआ लेकिन क्या इसके साथही साथ आपने अपने पूज्य गुरुमहाराजके पवित्र नाम को भी [ जिनके नाम विनंती की गई थी और जिनके आप आज्ञाकारी शिष्य हैं ] रद्दीकी टोकरीके स्वाधीन कर दिया है ? इससे जनताको आपकी विशाल बुद्धि का परिचय मिल गया. अस्तु. कहांतक लिखा जाय: संघके नम्र प्रार्थना पत्र को रद्दीकी टोकरी में डालकर संघकी ओरसे आपने आचार्य महाराजसहित अपने साधु मंडलको रद्दीकी टोकरीके स्वाधीन करनेके योग्य साबित करलिया है. इसके लिये आपको अनेकशः साधुवाद-धन्यवाद हैं. ता. २०-५-२२. संघके आगेवान् गृहस्थ. ऊपरके तमाम पत्रव्यवहार के लेखसे, संघकी विनंतीके लेखसे और ऊपर के सूचना पत्रके लेखसे श्रीविजयधर्मसूरिजी अपने परिवारसहित इन्दोरमें अपनी न्याय शीलताकी, साधु धर्मके मर्यादा की, और देवद्रव्यके शास्त्रार्थ में सत्यता की कैसी शोभा.प्राप्त करके यहांसे कल रोज दुपहर
SR No.032002
Book TitleDev Dravya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherNaya Jain Mandir Indore
Publication Year1920
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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