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गुरु-शिष्य
सयानेपन से आगे चल रहा है, वह मोक्ष तो कभी भी नहीं पाएगा। क्योंकि सिर पर कोई ऊपरी नहीं है। सिर पर कोई गुरु या ज्ञानी नहीं हों तब तक क्या कहलाएगा? स्वच्छंद ! जिसका स्वच्छंद रुके उसका मोक्ष होता है। ऐसे ही मोक्ष नहीं होता ।
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सब से उत्तम तो, गुरु से पूछना चाहिए। लेकिन वैसे गुरु तो इस समय में कहाँ से लाएँ? इसके बजाय तो किसी भी एक व्यक्ति को गुरु बनाना, तो भी चलेगा। आपसे बड़े हों और आपका ध्यान रखते हों और आपको लगे कि, 'मेरे दिल में ठंडक लगती है, तो वहाँ बैठ जाना और स्थापना कर देना । शायद कभी एक-दो भूलें उनकी हों तो निभा लेना । आप पूरे भूल से भरे हैं और उनकी तो एक-दो भूलें हैं, उसमें आप किसलिए न्यायधीश बनते हो? आपसे बड़े हैं, तो आपको ऊँचे ले ही जाएँगे। खुद न्यायधीश बने, वह भयंकर गुनाह है।
जब तक सम्यक्दर्शन नहीं होता, तब तक स्वच्छंद नहीं जाता । या फिर किसी गुरु के अधीन बरतते हों तो उसका छुटकारा होगा । परंतु बिल्कुल अधीन, सर्वाधीन रूप से बरतता हो तभी ! गुरु के अधीन रहता हो उसकी तो बात ही अलग है। भले ही गुरु मिथ्यात्वी होंगे उसमें हर्ज नहीं है, परंतु शिष्य गुरु के अधीन, सर्वाधीन रहे तो उसका स्वच्छंद जाए। कृपालुदेव ने तो बहुत सच्चा लिखा है, परंतु अब वह भी समझना मुश्किल है न ! जब तक स्वच्छंद जाएगा नहीं, तब तक किस तरह समझ में आएगा वह ? स्वच्छंद का जाना आसान चीज़ है ?
प्रश्नकर्ता : वह तो ज्ञानी नहीं मिलें, तब तक स्वच्छंद जाएगा ही नहीं
न!
दादाश्री : नहीं, चाहे बावरे जैसा गुरु भी सिर पर रखा हो और शिष्य अपनी शिष्यता का विनय पूरी ज़िन्दगी कभी भी नहीं चूके तो उसका स्वच्छंद गया कहा जाएगा। गुरु के विरोधी होकर इन लोगों ने गालियाँ दी हैं । मनुष्य का ऐसा सामर्थ्य नहीं है कि वह विनय चूके बगैर रहे, क्योंकि थोड़ा भी आड़ाटेढ़ा देखे कि बुद्धि पागलपन करती ही है!