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गुरु-शिष्य
इसलिए कृपालुदेव ने कहा है न, 'सजीवन मूर्ति के लक्ष के बिना जो कुछ भी किया जाए, वह जीव के लिए बंधन है। यह हमारा हृदय है।' यह एक ही वाक्य इटसेल्फ सबकुछ समझा देता है। क्योंकि सजीवन मूर्ति के बिना जो भी कुछ करो, वह स्वच्छंद है। प्रत्यक्ष यदि हाज़िर हों, तो ही स्वच्छंद रुकेगा। नहीं तो स्वच्छंद किसीका रुकेगा नहीं।
प्रश्नकर्ता : परंतु प्रत्यक्ष सद्गुरु योग नहीं हो तो जो सद्गुरु हो चुके हैं, उनके जो वचन हों, उनका आधार लेकर जीव यदि पुरुषार्थ करे तो उसे समकित प्राप्त होगा, ऐसा भी कहा है। वह बात सत्य है या नहीं?
दादाश्री : वह तो करते ही हैं न! और समकित हो जाए, तब तो बुख़ार उतर गया ऐसा पता चलेगा न! समकित हो जाए तो बुख़ार उतर गया ऐसा पता नहीं चलेगा? बुख़ारवाली स्थिति और बुख़ार उतरी हुई स्थिति का पता चलेगा या नहीं पता चलेगा? दृष्टिफेर हुआ या नहीं, वह पता नहीं चलेगा? समकित मतलब दृष्टिफेर! कभी एक्सेप्शन, किसीके लिए अपवाद होता है। लेकिन हम यहाँ पर अपवाद की बात नहीं कर रहे हैं। हम तो सब सामान्य प्रकार की बात कर रहे हैं।
प्रश्नकर्ता : सद्गुरु के जो वचन हैं, उनका आधार लेकर यदि कुछ पुरुषार्थ किया जाए तो मनुष्य प्राप्ति कर सकता है न?
दादाश्री : कोई परिणाम नहीं आता न! फिर तो कृपालुदेव का वाक्य निकलवा देना कि 'सजीवन मूर्ति के लक्ष्य के बिना जो कुछ भी किया जाए, वह जीव के लिए बंधन है। यह हमारा हृदय है।' कितना बड़ा वाक्य है! फिर भी लोग जो करते हैं, वह गलत नहीं है। 'यह आप करते हो वह गलत है, उससे मोक्ष नहीं मिलेगा' ऐसा हमलोग कहें तो वह दूसरे कहीं पर ताश खेलने चला जाएगा। उल्टे रास्ते पर चला जाएगा। उससे तो यह जो कर रहा है, वह अच्छा है। लेकिन कृपालुदेव के कहे अनुसार चलो। प्रत्यक्ष सद्गुरु ढूँढो!
इसलिए कृपालुदेव ने बहुत ज़ोर देकर कहा है कि भाई, सजीवन मूर्ति के बिना कुछ मत करना। वह स्वच्छंद है, निरा स्वच्छंद है! जो खुद के ही