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गुरु-शिष्य
पहचान हो जानी चाहिए । जिन्होंने देखा नहीं हो, उनका काम नहीं होता, फिर उनके पीछे समाधि पर सिर फोड़ो फिर भी उससे कुछ होगा नहीं।
यह तो महावीर के फोटो भी कुछ काम नहीं करते और कृष्ण भगवान के फोटो भी कुछ काम नहीं करते । प्रत्यक्ष हों तभी काम करेंगे। कितने ही अवतारों से कृष्ण भगवान को भजते हैं, लोग महावीर को भजते हैं। लोगों ने कुछ कम किया है? भजना कर-करके थक गए। रोज़ मंदिर गए तो भी देखो धर्मध्यान नहीं बँधता । फिर इसमें भी अवधि होती है। इन दवाईयों की भी अवधि डाली होती है न, वह आप जानते हो न? एक्सपायरी डेट ! वैसे ही इसमें भी होता है । लेकिन लोग तो जो चले गए हैं उनके ही नाम को बिना समझे गाते ही रहते हैं ।
प्रश्नकर्ता : जीवित गुरु की इतनी अधिक अपेक्षा क्यों रहती होगी?
दादाश्री : जीवित गुरु नहीं हो तो कुछ भी होता नहीं है, कुछ बात नहीं बनती। सिर्फ उनसे भौतिक लाभ होता है । क्योंकि उतना टाइम अच्छे काम में रहा, उसके बदले में लाभ होता है । गुरु खुद यहाँ पर हाज़िर हों तभी वे आपके दोष निकाल देते हैं, आपके दोष दिखाते हैं। खुद की सभी भूलें खुद को दिखने लगें, उसके बाद उसे गुरु नहीं चाहिए । हमारी भूलें हमें दिखती हैं, इसलिए पूरी दुनिया में सिर्फ हमें ही गुरु की ज़रूरत नहीं पड़ती, वर्ना सभी को गुरु चाहिए। जो चले गए उनके पीछे आप गाते ही रहो न, फिर भी कुछ होता नहीं।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् गुरु के रूप में मूर्ति या फोटो हो फिर भी नहीं चलेगा?!
दादाश्री : : कुछ भी नहीं चलेगा। वह चित्रपट हस्ताक्षर नहीं कर सकता। आज यह इन्दिरा गांधी की फोटो लेकर हम बैठें, तो हस्ताक्षर हो जाते हैं क्या? इसलिए आज जो जीवित हैं, वे ही चाहिए । इसलिए आज इन्दिरा गांधी कुछ भी हेल्प नहीं कर सकती या जवाहर कुछ भी हेल्प नहीं कर सकते। अभी तो जो हाज़िर हैं, वे हेल्प करेंगे। दूसरा कोई हेल्प नहीं कर सकता । हाज़िर