________________
गुरु-शिष्य
२५
परंतु मुझे इस भव में विश्वास नहीं था कि इतना बड़ा ज्ञान उत्पन्न होगा। फिर भी वह सूरत के स्टेशन पर अचानक प्रकट हो गया। तब मुझे विश्वास हो गया कि यह तो ग़ज़ब का विज्ञान है ! इन लोगों का कोई पुण्य जगा होगा। निमित्त तो किसीको बनाना पड़ता है न? अब लोग समझे कि इन्हें ज्ञान यों ही प्रकट हो गया, लेकिन नहीं, पिछले अवतार में गुरु बनाए थे, उसका फल आया है यह। इसलिए गुरु के बिना तो कुछ भी हो ऐसा नहीं है। गुरु परंपरा चलती ही रहनेवाली है।
___ महत्ता ही जीवित गुरु की प्रश्नकर्ता : गुरु हाज़िर नहीं हों, तो भी खुद के शिष्य को मार्गदर्शन देते हैं या नहीं?
दादाश्री : प्रत्यक्ष हों तभी काम के। परोक्ष तो काम के ही नहीं। सदेह हाज़िर नहीं हों, वैसे परोक्ष गुरु कुछ भी हेल्प नहीं करते। फिर भी परोक्ष किस तरह से हेल्प करते हैं? जो गुरु हमें मिले हों और दस-पंद्रह वर्ष हमें लाभ दिया हो, हमने उनकी सेवा की हो और दस-पंद्रह वर्ष एकता रही हो और फिर देहांत हो गया हो तो कुछ लाभ देते हैं। वर्ना, कुछ भी लाभ नहीं देते, माथापच्ची करें तो भी!
प्रश्नकर्ता : तो जो गुरु हमने देखे ही नहीं हों, वे कुछ हेल्प करते ही नहीं?
दादाश्री : वे दो आने हेल्प करते हैं। एकाग्रता का फल मिलता है और वह भी भौतिक फल मिलता है। उससे तो अभी 'चार आने कम'वाले हों, वे अच्छे।
प्रश्नकर्ता : जिन गुरु ने समाधि ली हो, वे गुरु हमें फिर मदद करते हैं?
दादाश्री : जिन गुरु ने समाधि ली हो, उनके साथ जीते जी ही हमारा संबंध जुड़ा हो, उनका प्रेम जीता हुआ हो, उनकी कृपा प्राप्त की हुई हो, तो वे गुरु देहत्याग कर लें, उनकी समाधि हो तो भी काम होता है न! एकबार