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विषय नहीं, लेकिन निडरता वही विर्ष
लेकिन दोनों को इसी शर्त के साथ कि 'एकता और समझदारी के साथ रहना।' डॉक्टर ने बताया हो, उतनी बार दवाई पीना। ये तो रोज़ दो-दो, तीन-तीन बार दवाई पीते हैं, लोगों ने ऐसा कर दिया है न! और वास्तव में वह दवाई मीठी नहीं है।
प्रश्नकर्ता : इसमें भी, इतनी ही दवाई पीना, वह क्या अपने काबू में है? वह डोज़ काबू में नहीं रहे तो क्या करना चाहिए?
दादाश्री : काबू में नहीं रहे, ऐसी कोई चीज़ होती ही नहीं इस दुनिया में।
दवाई कब पीनी चाहिए? बुख़ार से छटपटाए तब !
यह 'अक्रमविज्ञान' है। विवाह करने पर भी मोक्ष चला जाए, ऐसा नहीं है। आप सभी संसारी हो और होना है एकावतारी तो उसका मेल कैसे बैठेगा? ये जैन शास्त्र स्पष्ट मना करते हैं, आचार्य भी मना करते हैं, फिर अपने लिए यह मेल कैसे बैठ गया? तब मैंने कहा कि 'स्त्री के साथ रहो, लेकिन मेरी शर्त क्या है कि आप भले ही कुछ भी खाना-पीना, लेकिन इस स्त्री विषय संबंध में तो जब दोनों को बुख़ार चढ़े, तभी दवाई पीना। यह दवाई मीठी है,इस वजह से शौक़ की खातिर मत पीना।' वर्ना इन संसारियों को एकावतारी तो क्या लेकिन समकित भी जल्दी नहीं हो सकता न! जबकि इन सभी को तो क्षायक समिकत बरतता है। सिर्फ इतनी सी ही भूल रही है। पूरा ही जगत्, 'यह मीठा है' मानकर बस पीते ही रहते हैं। बुख़ार हो या नहीं हो। अत: लोगों को तो अनादि से ऐसा अध्यास हो गया है, इसलिए हमें बार-बार कहना पड़ता है!
सभी धर्मों ने उलझन पैदा कर दी कि स्त्रियों को छोड़ दो। अरे! यदि स्त्री को छोड दूँ, तो मैं कहाँ जाऊँ? मेरे लिए खाना कौन बनाएगा? मैं अपना व्यापार संभालूँ या घर में चूल्हा फूंकूँ? अब ऐसा कहते हैं कि 'पत्नी छोड़ दो तो मोक्ष मिलेगा', तो पत्नी ने क्या गुनाह किया है?
प्रश्नकर्ता : और बीवियाँ भी ऐसा कहती हैं न कि 'हमें भी मोक्ष चाहिए, हमें आपकी ज़रूरत नहीं है।'