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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
समाधानपूर्वक आपसी व्यवहार रखना। आपको और उन्हें, दोनों का समाधान हो ऐसा व्यवहार रखना। उन्हें असमाधान हो और आपको समाधान रहे, तो ऐसा व्यवहार बंद कर देना । आपसे स्त्री को कोई दुःख नहीं होना चाहिए। आपको क्या लगता है ? कैसा व्यवहार करना चाहिए ? उसे दुःख नहीं हो, ऐसा । हो सकेगा या नहीं ? हाँ, यह जो स्त्री से विवाह किया है वह संसार व्यवहार के लिए है, न कि साधु बनने के लिए। तब फिर स्त्री मुझे गालियाँ नहीं देगी कि 'दादाजी ने मेरा संसार बिगाड़ दिया !' मैं ऐसा नहीं कहना चाहता। तो आपसे इतना कहता हूँ कि यह जो दवाई (विषय संबंध) है, वह मीठी दवाई है । और जिस तरह दवाई हमेशा सही मात्रा में ली जाती है, उसी तरह यह भी सही मात्रा में लेना।
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मीठी लगी इसलिए बार-बार पीते रहें, ऐसा कहीं करना चाहिए ? थोड़ा तो सोचो। क्या नुकसान होता है ? तो वह यह है कि जो भोजन लेते हैं उससे ब्लड बनता है, अन्य सब होते-होते आख़िर में उससे रज और वीर्य बनकर खत्म हो जाता है। विवाहित जीवन की शोभा कब रहेगी ? कि जब दोनों को बुख़ार चढ़ने पर ही वे दवाई पीएँ, तब । बिना बुख़ार दवाई पीते हैं या नहीं? एक को बुख़ार नहीं चढ़ा हो फिर भी दवाई पीए तो उससे विवाहित जीवन की शोभा नहीं रहती । दोनों को बुख़ार चढ़े तभी दवाई पीनी चाहिए। दिस इज़ ऑन्ली मेडिसिन। मेडिसिन मीठी है, सिर्फ इसलिए रोज़ पीने योग्य नहीं है। विवाहित जीवन की शोभा रखनी हो तो संयमी की ज़रूरत है। सभी जानवर असंयमी कहलाते हैं। अपना जीवन तो संयमी होना चाहिए! ये सभी जो पहले, राम-सीता आदि सभी हो चुके हैं, वे सभी संयमवाले थे। स्त्री के साथ संयमी! तब यह असंयम, वह क्या कोई दैवीगुण है ? नहीं, वह पाशवी गुण है। मनुष्य में ऐसे गुण नहीं होने चाहिए । मनुष्य असंयमी नहीं होना चाहिए। जगत् को यह समझ ही नहीं है कि विषय क्या है ! एक बार के विषय में करोड़ों जीव मर जाते हैं, वन टाइम में तो। समझ नहीं होने की वजह से यहाँ मज़े लेते हैं। समझते नहीं हैं न ! मजबूरन जीव मरें, ऐसा होना चाहिए। लेकिन यदि समझ नहीं हो, तब क्या हो सकता है ?
इसलिए हमने कहा है कि पत्नी का संग रखने में हर्ज नहीं है ।