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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
कहेगी, ‘नहीं चलेगा ।' वहाँ तो दावा करेगी । यही एक ऐसी चीज़ है कि सामनेवाला दावा करता है । अतः यहाँ सँभालकर काम निकाल लेना है । आपकी समझ में आया, यह दावा करना, वह ? उसी से ये सारी उलझनें पैदा हुई हैं। अतः यही एक भोग ऐसा है कि जो बहुत दुःखदायी है।
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यह जीता-जागता परिग्रह है । इसलिए इसमें दावा करते हैं, बैर भी बाँधते हैं। कई पुरुषों ने स्त्रियों को जला डाला है। कई स्त्रियाँ भी पुरुषों को ज़हर दे देती हैं । इन सभी से बैर बँधता है ।
प्रश्नकर्ता: क्रमिक मार्ग में बाहर सभी जगह विषयों के त्याग को प्रथम स्थान क्यों दिया है ?
दादाश्री : सिर्फ इन विषयों का ही झंझट है, अन्य सब चीज़ों का बहुत झंझट नहीं है। उसका क्या कारण है ? हमने चाहे कितनी ही महँगी पकौड़ियाँ ली हों, लेकिन उसके बाद हमें जितनी खानी हों, उतनी खाते हैं। बाकी जो नहीं खानी हों और किसी को दे दें तो वे पकौड़ियाँ हम पर दावा नहीं करेंगी! वे दावा करेंगी ?
प्रश्नकर्ता : नहीं करेंगी।
दादाश्री : यह इत्र का फाहा ऐसे कान में डालें और फिर हम किसी को दे दें तो क्या वह इत्र दावा करेगा ? फिल्म देखने गए हों, तो वहाँ जितनी देखनी हो उतनी देखी और फिर ज़रा नींद आए और सो गए, तो क्या वह फिल्म दावा करेगी आप पर कि, 'तूने क्यों मुझे नहीं देखा ? टिकट लिया है तो अब तुझे मुझे देखना ही पड़ेगा, ' कोई ऐसा दावा नहीं करता ।
ठंड पड़े तो त्वचा को ठंड लगती है तब ओढ़कर बैठ जाएँ तो ठंड कोई दावा नहीं करती और सिर्फ इस विषय में ही सामने चेतन है, इसलिए दावा करता है । आप कहो कि 'अब मुझे इसका त्याग करना है ' तो वह कहेगी कि ‘यह नहीं चलेगा, शादी क्यों की थी ?' यानी यह पकौड़ी जैसा नहीं है। बहुत बड़ा जोखिम है ! यदि पकौड़ी जैसा होता तो हम आपको छूट दे देते कि, भाई, तुझे ऐसे जो भी विषय करने हों वे करना, लेकिन इस स्त्री विषय में ज़रा सावधान रहना। क्योंकि वह दावा तो ऐसा