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अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक (खं-2-१७)
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उनका ज़रा भी 'प्रभाव' नहीं पड़ता। जिसका प्रभाव पड़ता हो, वह तो अगर खुद कुछ भी नहीं बोले फिर भी बीवी को घबराहट हो जाती है। जबकि यहाँ तो बीवी का प्रभाव पड़ता है। लेकिन जिसके मन में ऐसे भाव हों कि मुझे शादी के बिना ही चलेगा ऐसा है, जिसका ऐसा स्ट्रोंग माइन्ड हो तब वह ब्रह्मचर्य पालन कर सकता है। इसमें सतही तौर पर किया गया नहीं चलेगा। इस संसार में तो दुःख है, इसलिए मुझे शादी नहीं करनी है, भय के मारे ऐसा बोले तो वह नहीं चलेगा।
चारित्रबल से कांपती हैं स्त्रियाँ अभी तो ये शादी के लिए क्यों मना करते हैं? भगेडू वृत्ति, भाग छूटो, वर्ना फँस जाएँगे!
प्रश्नकर्ता : ऐसा ही होना चाहिए न! विषय से संबंधित और इस संसार से संबंधित, स्त्री से संबंधित तो भगेडू वृत्ति ही होनी ज़रूरी है न?
दादाश्री : यानी कल यदि स्त्री हाथ से हाथ मिलाए तो क्या रो पड़ना चाहिए?
प्रश्नकर्ता : लेकिन कैसे भी बचकर भाग निकलने का रास्ता ढूँढकर निकल जाना है, रास्ता ढूँढकर भाग तो जाना चाहिए न?
दादाश्री : नहीं, लेकिन हाथ पकड़ा तो क्या हो गया? बल्कि उसे डरना चाहिए हमसे। मतलब हाथ पकड़ने में उसे घबराहट हो, उसे डर लगे। यह तो इसे डर लगता है। 'अब क्या होगा, अब क्या होगा?' अरे क्या होगा?
प्रश्नकर्ता : 'मुझे कुछ नहीं होगा।' ऐसे निडर तो नहीं हो सकते न, स्त्री हाथ पकड़े तो?
दादाश्री : उसमें तो चारित्रबल चाहिए। यों ऐसे नहीं चलेगा कि कोई हाथ पकड़े तो डर जाए। उसमें तो चारित्रबल चाहिए।