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[१३] न हो असार, पुद्गलसार
पुद्गलसार है, ब्रह्मचर्य ब्रह्मचर्य, वह क्या है? वह पुद्गलसार है। हम जो खाना खाते हैं, पीते हैं, इन सबका सार क्या रहा? 'ब्रह्मचर्य'! यदि आपका यह सार चला जाए तो उसे जो आत्मा का आधार है, वह आधार 'लूज़' हो जाएगा! इसलिए ब्रह्मचर्य मुख्य चीज़ है। एक ओर ज्ञान हो और दूसरी ओर ब्रह्मचर्य हो तो सुख का अंत ही नहीं रहेगा न! फिर ऐसा चेन्ज आता है कि बात ही मत पूछो! क्योंकि ब्रह्मचर्य, वह पुद्गलसार है न?
यह सब जो खाते हैं, पीते हैं, उसका क्या होता होगा पेट
में?
प्रश्नकर्ता : खून बनता है। दादाश्री : और संडास नहीं बनती होगी?
प्रश्नकर्ता : बनती है न! कुछ आहार से खून और कुछ संडास के माध्यम से सारा कचरे के रूप में निकल जाता है।
दादाश्री : हाँ, और कुछ पानी के माध्यम से निकल जाता है। इस खून से फिर क्या बनता है?
प्रश्नकर्ता : खून से वीर्य बनता है।
दादाश्री : ऐसा! वीर्य को समझता है? खून से वीर्य बनता है, उस वीर्य से फिर क्या बनता है? खून की सात धातु कहते