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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
दादाश्री : कंदमूल तो अब्रह्मचर्य को ज़बरदस्त पुष्टि देनेवाले हैं। ऐसे नियम रखने पड़ते हैं ताकि उसका ब्रह्मचर्य रह पाएटिक पाए। और जिससे ब्रह्मचर्य टिक सके, उसका भोजन इतना सुंदर होना चाहिए। अब्रह्मचर्य से सारी रमणीयता चली जाती है
और जो ब्रह्मचर्य का पालन करे, वह रमणीय बनता है। इंसान प्रभावशाली दिखता है।
प्रश्नकर्ता : अभी तक हम कंदमूल नहीं खाते थे। ज्ञान लेने के बाद खाना शुरू किया, तो बाधक नहीं रहेगा? दोष नहीं लगेगा?
दादाश्री : किसे दोष लगेगा इसमें? इस डिस्चार्ज में कैसा दोष? हम इन ब्रह्मचारियों को दोष लगने के लिए नहीं, उन्हें तो अगर यह सब नहीं खाएंगे न, तो विषय का ज़ोर कम हो जाएगा। उन्हें तो ऐसा रक्षण के लिए करना होता है। दोष का और इसका लेनादेना नहीं है।
प्रश्नकर्ता : यह जो वर्णन किया है कि सुई की नोक पर आलू का, उस नाप का एक पीस आए, तो उसमें अनंत जीव होते हैं, उन जीवों को...
दादाश्री : वह सब किसके लिए है? जिसे बुद्धि बढ़ानी हो न, उसके लिए है। उसके आग्रही बन जाएँ तो कब पार आएगा?
और यह मोक्ष का मार्ग निराग्रही है। इसे जानना ज़रूर है और हो सके, उतना कम कर देना है।