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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : इतने सारे लोग इकट्ठा हो रहे हैं, तो संगबल बढ़ा है तो उससे परिणती भी बढ़ती जाएगी, ऐसा है ?
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दादाश्री : हाँ, जैसे-जैसे संगबल बढ़ता है, वैसे-वैसे परिणती बढ़ती है। अभी तीन ही सत्संगी हों तो कम परिणती रहती हैं, पाँच हों तो पाँच जितनी रहती हैं और हज़ार हों तो फिर कोई विचार ही नहीं आता। सभी का आमने-सामने इफेक्ट पड़ता है। अभी ब्रह्मचर्य रह पाता है, वह भी आपका पुण्य है और जब पुण्य बदले तब पुरूषार्थ की ज़रूरत है ! इस वजह से समूह में रहना है। समूह में एक-दूसरे के विचारों का असर होता है ! ब्रह्मचर्य का पालन करना आसान नहीं है, उसमें कुदरत का साथ चाहिए। अपना पुण्य और पुरुषार्थ चाहिए । फिर अंदर आनंद उत्पन्न होगा और वह भी आप सब साथ में रहोगे तब होगा। क्योंकि आमनेसामने असर होता है। पचास ब्रह्मचारियों के साथ पाँच नालायक लोगों को रख दें तो क्या होगा ? दूध फट जाएगा ।
दादा तो तैयार ही हैं,
आप सब के निश्चय की ज़रूरत है। सबका हल आ जाएगा। अभी ठोकरे खा रहे हो, वह भी अच्छा है, क्योंकि अगर पहले अनुभव हो चुका हो तो बाद में आप देखोगे ही नहीं, लेकिन इस ओर का अनुभव नहीं हुआ हो तो फिर कच्चा पड़ जाता है। दीक्षा लेने के बाद कच्चा पड़े तो बल्कि बदनाम होगा और फिर उसे निकाल देंगे वहाँ से!
प्रश्नकर्ता : वह तो बहुत बड़ी जोखिमदारी कहलाएगी।
दादाश्री : जोखिमदारी ही है न!
वहाँ से सब निकाल ही देंगे। फिर न रहे घर का और न रहे घाट का ! इससे अच्छा अभी यहाँ गलती हुई होगी वह चला लेंगे, लेकिन बाद में वहाँ तो गलती होनी ही नहीं चाहिए। तुझे ठोकरें खाने को मिलती है या नहीं ?
प्रश्नकर्ता : वे ठोकरें भी खाने जैसी नहीं है।