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[१०] विषयी आचरण? तो डिसमिस ___यहाँ किए हुए पाप से मिले नर्क
दृष्टि बिगड़े तब वह गलत कहलाता है। दृष्टि नहीं बिगड़े वह ब्रह्मचर्य कहलाता है। बाहर बिगड़े तो हर्ज नहीं। उसका भी प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। यहाँ तो सभी विश्वास से आते हैं न!
अन्य जगह पाप किए हों न, वे यहाँ आने से धुल जाते हैं, लेकिन यहाँ पर किया हुआ पाप नर्कगति में भुगतना पड़ता है। जो हो चुके हों उन्हें लेट गो करते हैं, लेकिन नया तो नहीं होने देना चाहिए न! जो हो चुका है, उसका फिर कुछ उपाय है क्या?
एक बार उल्टा काम हो जाए, अपने आप ही यहाँ से कहीं और चला जाए, मुँह दिखाने के लिए भी खड़ा न रहे। वर्ना फिर दुनिया उल्टी ही चलेगी न, ब्रह्मचर्य के नाम पर! यहाँ ऐसा नहीं चलेगा!
'अन्य क्षेत्रे कृतम् पापम्, धर्म क्षेत्रे विनश्यति।'
बाहर जो संसार में पाप किया हों, वे धर्मक्षेत्र में जाने से नाश हो जाते हैं और 'धर्मक्षेत्र कृतम पापम् वज्रलेपो भविष्यति' वे नर्कगति में ले जाते हैं। बाहर पाप करने और यहाँ पाप करने में बहत फर्क है! यहाँ पर तो पाप का विचार तक नहीं आना चाहिए, वज्रलेप होता है। वज्रलेप यानी नर्क के बंधन बंधते हैं, भयंकर यातना भुगतनी पड़ती है!