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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
'दादा ने मेरा ऐसा किया और वैसा किया। दादा ने मेरा नुकसान किया या दूसरी और व्यापार में ऐसे हुआ, फलाना हुआ,' तो उससे बाँध लेता है, लेकिन मुझे उसके लिए ऐसा विचार आए, ऐसा मेरे पास है ही नहीं न, तो बाँधेगा कैसे? मैं वीतराग ही रहता हूँ, तो वह बाँधे कैसे? मैं वहाँ चिपकूँगा तब मुझे बाँधेगा। वहाँ वीतराग रहना है। छूटने का रास्ता यही है।
प्रश्नकर्ता : कैसे वीतराग रहते हैं?
दादाश्री : भले ही कुछ भी करके भी हमें उस प्रकृति के प्रति द्वेष भी नहीं और राग भी नहीं करना है। वह कहलाता है समभाव से निकाल! वह कितना भी खराब करे, उल्टा करे, नुकसान करे, यदि मैं उसे थोड़ा भी रिपेयर करने जाऊँ तो उसका मतलब इतना है कि मैं राग-द्वेष में पड़ा तो मुझे अभी भी ज़रूरत है, इच्छा है मेरी, राग-द्वेषवाली प्रकृति है। उसका समभाव से निकाल करने को कहा है।
उसका मन अपने प्रति राग में रहेगा तो बाँधेगा। ऐसा नहीं होना चाहिए। राग या द्वेष से लोगों के मन बाँधते हैं, लेकिन मेरे साथ सच्चे प्रेम से बाँधे तो बल्कि पूरे दिन शांति रहेगी। भगवान महावीर इसी तरह छूटे थे, वर्ना नहीं छूट पाते।