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पछतावे सहित प्रतिक्रमण (खं-2-७)
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दादाश्री : अभी तक जो गलतियाँ हो चुकी हैं, उनके प्रतिक्रमण करने हैं। भविष्य में ऐसी गलतियाँ नहीं हों, ऐसा निश्चय करना है।
प्रश्नकर्ता : जो कुछ गलतियाँ हो गई हैं, वे हमें बारबार सामायिक में दिखती रहें तो?
दादाश्री : जब तक दिखते रहें, तब तक उनके लिए क्षमा माँगनी चाहिए, क्षमापना लेनी चाहिए। उस पर 'वह' पछतावा करना चाहिए, प्रतिक्रमण करना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : अभी सामायिक में बैठे और वह दिखा, फिर भी बार-बार क्यों आते हैं?
दादाश्री : वे तो आएँगे न! अंदर परमाणु होंगे तो आएँगे न! उसमें हमें क्या हर्ज़ है?
प्रश्नकर्ता : ये आते हैं, इसका मतलब यह कि अभी तक धुला नहीं है।
दादाश्री : नहीं, वह माल तो अभी बहुत समय तक रहेगा। अभी तो दस-दस साल तक रहेगा, लेकिन तुम्हें सारा निकलना है।
प्रश्नकर्ता : यह जो दृष्टि चली जाती है, उसके लिए क्या करना चाहिए? मतलब यों तो पता चल जाता है कि हम यहाँ उपयोग चूक गए, हमें 'यह 'स्त्री' है,' वह 'स्त्री' दिखनी ही नहीं चाहिए न?
दादाश्री : स्त्री दिखे, अंदर विचार आएँ, तब भी उन सब के लिए प्रतिक्रमण करने हैं। तुझे चंद्रेश से कहना है कि प्रतिक्रमण कर! वह कोई बड़ी बात नहीं है।
विषयों में सुखबुद्धि किसे? प्रश्नकर्ता : जब तक पाँच इन्द्रियों के विषयों में सुखबुद्धि है, तब तक निकाल नहीं होगा न?