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है।' जिसके साथ रास न आए, वहीं पर शक्तियाँ विकसित करनी हैं। अनुकूल है, वहाँ तो शक्ति है ही। प्रतिकूल लगना, वह तो कमज़ोरी है। मुझे सबके साथ क्यों अनुकूलता रहती है? जितने एडजस्टमेन्ट लोगे, उतनी शक्तियाँ बढ़ेगी और अशक्तियाँ टूट जाएँगी। सही समझ तो तभी आएगी, जब सभी उल्टी समझ को ताला लग जाएगा।
नरम स्वभाववालों के साथ तो हर कोई एडजस्ट होगा मगर टेढ़े, कठोर, गर्म मिज़ाज लोगों के साथ, सभी के साथ एडजस्ट होना आया तो काम बन जाएगा। भड़कोगे तो नहीं चलेगा। संसार की कोई चीज़ हमें 'फिट' नहीं होगी, हम ही उसे 'फिट' हो जाएँ तो दुनिया सुंदर है और उसे 'फिट' करने गए तो दुनिया टेढ़ी है। इसलिए एडजस्ट एवरीव्हेर!
आपको ज़रूरत हो, तब सामनेवाला यदि टेढ़ा हो, फिर भी उसे मना लेना चाहिए। स्टेशन पर मज़दूर की ज़रूरत हो और वह आनाकानी कर रहा हो, फिर भी उसे चार आने ज़्यादा देकर मना लेना होगा और नहीं मनाएँगे तो वह बैग हमें खुद ही उठाना पड़ेगा न!
शिकायत? नहीं, ‘एडजस्ट' घर में भी 'एडजस्ट' होना आना चाहिए। आप सत्संग से देर से घर जाओ तो घरवाले क्या कहेंगे? 'थोड़ा-बहुत तो समय का ध्यान रखना चाहिए न?' तब हम जल्दी घर जाएँ तो उसमें क्या गलत है? अब उसे ऐसा मार खाने का वक्त क्यों आया? क्योंकि पहले बहुत शिकायतें की थीं। उसका यह परिणाम आया है। उस समय सत्ता में आया था, तब शिकायतें ही शिकायतें की थीं। अब सत्ता में नहीं है, इसलिए शिकायत किए बगैर रहना है। इसलिए अब 'प्लस-माइनस' कर डालो। सामनेवाला गाली दे गया, उसे जमा कर लेना। फ़रियादी होना ही नहीं है!
घर में पति-पत्नी दोनों निश्चय करें कि मुझे 'एडजस्ट' होना है, तो दोनों का हल आ जाएगा। वह ज्यादा खींचतान करे, तब हम 'एडजस्ट' हो जाएँ तो हल निकल आएगा। यदि 'एडजस्ट एवरीव्हेर'
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