________________ आश्रव : कर्म के उदय की शुरुआत परिश्रव : नये बंध पड़े बगैर कर्म की निर्जरा होना तरंगे : शेखचिल्ली जैसी कल्पनाएँ ऊपरी : बॉस, वरिष्ठ मालिक : जैन शास्त्र शब्द चलण :: वर्चस्व, सत्ता, खुद के अनुसार सब को चलाना अर्धपुद्गल परावर्तन काल : ब्रह्मांड के सारे पुद्गलों को स्पर्श करके, भोगकर खत्म करने में जो समय (काल) व्यतीत होता है, उससे आधा काल विगई