________________ [6] एक पुद्गल को देखना 491 निकालकर देखा कि सिर्फ एक ही, यह सारा सिर्फ पुद्गल ही हैं। यों वराईटीज़ तो लोगों ने, बुद्धिशालियों ने बनाई थीं। अत: महावीर भगवान सिर्फ एक पद्गल को ही देखते रहते थे। और कुछ भी नहीं देखते थे। वराईटी वगैरह नहीं देखते थे। यहाँ पर तो कितनी सारी वराईटीज़ हैं? हर एक की दुकान में पुद्गल की वराईटीज़ हैं। लेकिन भगवान क्या देखते थे कि यह स्त्री-पुरुष, यह बच्चा, यह ऐसा-वैसा, यह सोना, यह चाँदी-पीतल, यह ऐसा है वगैरह सब नहीं देखते थे। सिर्फ एक ही पुद्गल। अतः यह छोड़ना है और यह नहीं छोड़ना है ऐसा नहीं था। सब एक ही पुद्गल है। एक ही पुद्गल की तरह देखते रहते थे बस और कुछ नहीं देखते थे भगवान। भगवान बहुत पक्के इंसान थे। उन्हें पहचान नहीं सके, इसीलिए तो हम भटक मरे न ! सिर्फ वही एक पक्के थे, इसलिए छूट गए। जो पक्के होते हैं, वे छूट जाते हैं न! वर्ना अगर कच्चा पड़ जाए तो वह तो मार खाएगा न! कील ठोकनेवाला कच्चा रहा लेकिन कील खानेवाले पक्के थे, तो वे चले गए। किस तरह से कीलों को झेला कि वे चले गए और ठोकनेवाला यहीं रह गया? एक ही पुद्गल को देखा, पुद्गल पुद्गल को मार रहा है। एक ही पुद्गल देखा उन्होंने। प्रश्नकर्ता : ठोकनेवाला भी पुद्गल और यह भी पुद्गल? दादाश्री : बहुत पक्के। महावीर का है यह तरीका प्रश्नकर्ता : भगवान महावीर खुद के एक पुद्गल को ही देखते रहते थे। तो भगवान महावीर आत्मा में रमणता करते थे या पुद्गल को देखते थे? दादाश्री : पुद्गल को देखना और जानना, उसी को आत्मरमणता कहते हैं। भगवान महावीर क्या करते थे, एक ही पुद्गल में दृष्टि स्थिर करके रहे। उसके बाद केवलज्ञान उपजा था। प्रश्नकर्ता : अंत में यही करना है, ऐसा लक्ष (जागृति) में रहना चाहिए।