________________ [6] एक पुद्गल को देखना 489 देख ही नहीं सकते न! बाहर ही दखलंदाजी करते रहते हैं, ऐसा कहना चाहते हैं। आप देखने का अभ्यास करते हो लेकिन हो नहीं पाता। थोड़ीथोड़ी देर तक रहकर वापस चूक जाते हैं, बाकी तो बाहर ही चला जाता है! प्रश्नकर्ता : वह स्टेज आएगी तो सही न? दादाश्री : प्रयत्न वही होना चाहिए लेकिन हो नहीं पाता न, रहता नहीं है न! जाता है और आता है, जाता है और आता है। उसे जानना है। एक ही पुद्गल को देखना है। चंदूभाई का मन क्या कर रहा है, बुद्धि क्या कर रही है, चित्त क्या कर रहा है, चंदूभाई क्या-क्या कर रहे हैं, निरंतर इसी सब का निरीक्षण करना है कि यह क्या है? वही कम्पलीट शुद्धात्मा ! प्रश्नकर्ता : मान लीजिए कि भगवान महावीर पुद्गल को देख रहे हैं और उस समय गौतम स्वामी उनसे प्रश्न पूछे तो उसका जवाब मिलेगा ना दादाश्री : फिर भी वे खुद तो एक ही पुद्गल को देखते रहते थे। प्रश्नकर्ता : तो वह जवाब बाहर का भाग देता है न? दादाश्री : खुद जवाब नहीं देते थे, उस घड़ी जो पुद्गल भाग था, वही भाग जवाब देता था। प्रश्नकर्ता : ठीक है लेकिन बाहर का भाग हम किसे कहते हैं, एक पुद्गल और उसके अलावा का भाग? दादाश्री : देखनेवाले और जाननेवाले का बाहरी भाग नहीं होता। यह अभी जो तू बोल रहा है न, उसे जो देखता है और जानता है, वह ज्ञान कहलाता है। प्रश्नकर्ता : तो दादा, वह स्टेज अपने आप ही आएगी? दादाश्री: हमें तो उस प्रयत्न में रहना चाहिए न, यह सब करना है ऐसा सब होना चाहिए न!