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[२.९] आयुष्य कर्म
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दादाश्री : आयुष्य कर्म तो, आप लोगों के आयुष्य को जितना नुकसान पहुँचाते हो, जीवमात्र के आयुष्य का आप जितना नुकसान करते हो, वह आप खुद के ही आयुष्य का नुकसान कर रहे हो ।
प्रश्नकर्ता : तो इन कसाइयों को तो तुरंत ही मर जाना चाहिए लेकिन कसाई तो बहुत लंबे समय तक जीते हैं।
दादाश्री : कसाई गुनहगार होते ही नहीं । कसाई के लिए तो वह उसका बाप का धंधा है । खानेवाले गुनहगार हैं।
प्रश्नकर्ता : लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि आयुष्य ऋणानुबंध के अनुसार रहता है। फेमिली के साथ ऋणानुबंध पूरे हो जाएँ तो वहाँ से माया सिमट जाती है
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दादाश्री : वह बात तो दिए जैसी साफ ही है । लेकिन आयुष्य ऋणानुबंध का मतलब क्या है कि आपने जितना दूसरे को दुःख दिया होगा, उतना ही आपका आयुष्य कम होगा। सभी को सुख दोगे तो आयुष्य बढ़ेगा। फिर उसी अनुसार ऋणानुबंध बंध जाएगा । यों दिखने में ऋणानुबंध है लेकिन सूक्ष्म चीज़ अलग ही होती है।