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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
अब एक ही मिनट बचा है, उसके सिरहाने दीया जलाते हैं। अब एक ही मिनट बचा है, तो एक मिनट में तो साठ सेकन्ड हैं। चालीस सेकन्ड बीते कि वापस फिर से बंधता है। अभी भी बीस सेकन्ड बाकी हैं, उनमें से तेरह सेकन्ड बीते कि फिर से बंधता है। उसके बाद अंतिम एक बंध बंधता है, इस तरह से आयुष्य बंधता है। फोटो पड़ते ही रहते हैं। एक बार मनुष्य का होता है, एक बार देव का होता है, एक बार गधे का होता है, कुत्ते का होता है फोटो बदलते ही रहते हैं और जो अंत में पड़ा वही सही है। तो मरने से एक दिन पहले तो बहुत ही सारे फोटो पड़ते रहते हैं लेकिन वे सब फोटो तो गलत हैं, अंतिम फोटो कौन सा पड़ा, वही सच है। इस प्रकार से यह साइन्टिफिक है, एक्ज़ेक्ट सही है।
मातृ भाववाले का आयुष्य लंबा प्रश्नकर्ता : दादा, आयुष्य कर्म के लिए कैसा भाव होना चाहिए ताकि आयुष्य लंबा हो? आयुष्य के लिए किस तरह के कर्म होते हैं जिनसे आयुष्य लंबा हो या छोटा होता है?
दादाश्री : आयुष्य कर्म के लिए तो अगर मातृभाव कम हो तो आयुष्य कर्म टूट जाता है। मातृभाव होना चाहिए सभी के लिए। किसी को दुःख हो जाए तो वह उसे अच्छा न लगे, किसी को दुःख हो जाए तो मदद करने को दौड़े।
प्रश्नकर्ता : पुरुषों में भी ऐसा वात्सल्य भाव होता है? दादाश्री : हाँ, होता है, बहुत होता है।
प्रश्नकर्ता : और जितना वात्सल्य भाव अधिक उतना ही अगले जन्म में लंबा आयुष्य रहता है?
दादाश्री : हाँ।
प्रश्नकर्ता : लेकिन यह जो आयुष्य कर्म है, वह किस आधार पर फिक्स होता है?