________________
[२.९] आयुष्य कर्म
२४९
प्रश्नकर्ता : जीव आयुष्य बंध के साथ ही जन्म लेता है न? तो अगर आयुष्य ऐसा हो सकता है तो क्या पूर्वबंध का सिद्धांत खत्म हो जाता है?
दादाश्री : नहीं, आयुष्य का अर्थात् वर्षों का बंध नहीं है, इतने श्वासोच्छ्वास का नियम है। इन हिसाब लगानेवालों ने क्या खोज की? इतने करोड़, इतने अरब श्वासोच्छ्वास हैं, वह इसका आयुष्य और उस पर से, हर रोज़ एक तंदरुस्त व्यक्ति के इतने श्वासोच्छ्वास खर्च हो जाते हैं। तंदरुस्त व्यक्ति के, अबव नॉर्मल नहीं, बिलो नॉर्मल नहीं, ऐसे व्यक्ति के इतने श्वासोच्छ्वास खर्च हो जाते हैं, उस हिसाब से इन्होंने वर्ष निकाले। यह श्वासोच्छ्वास रूपी आयुष्य तो तय ही है! इन श्वासोच्छ्वास को फ्रेक्चर करना उसके हाथ में है। साल कम-ज्यादा हो सकते हैं। जिसमें यह श्वासोच्छ्वास ज्यादा खर्च होते हैं, ऐसे कर्म करने से आयु के साल कम होते जाते हैं। और जिन कर्मों में श्वासोच्छ्वास कम खर्च हों तो ऐसे कर्म करने से ज़्यादा सालों तक जी सकता है।
प्रश्नकर्ता : ऐसा कहा गया है कि आयुष्य की लंबाई श्वसोच्छ्वास पर निर्भर है, तो एक सेकन्ड में इतने श्वासोच्छ्वास होते हैं तो क्या उन्हें कोई कम-ज्यादा कर सकता है?
दादाश्री : हाँ, सब से ज़्यादा श्वासोच्छ्वास खर्च हो जाते हैं परस्त्रीगमन में। एक ही बार के परस्त्रीगमन में तो साल भर की आयु खत्म हो जाती है।
जब से अणहक्क (बिना हक़ का, अवैध) का विषय भोगने का विचार मन में आए न, तभी से सब संजोग मिलने पर अंदर तड़फड़ाहट उत्पन्न होती है। उससे आयुष्य की डोरी एकदम तेजी से खुल जाती है। सेकन्ड नंबर पर हक्क का विषय, उसमें भी श्वासोच्छ्वास खर्च हो जाते हैं। फिर क्रोध में बहुत ज़बरदस्त खर्च होते हैं। उसके सामने जो निर्विषयी हो गया है या खुद की स्त्री के प्रति ही, एक ही हो और लिमिटेड हो और अगर क्रोध नहीं करता है और ठंडे स्वभाव का है तो आयु के साल बढ़ जाते हैं। लोभ से आयु कम नहीं होती। लोभ से बढ़ती है। लोभी व्यक्ति