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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
समय निश्चित होता है और उस समय जो स्थान प्राप्त होता है उस स्थान
को....
प्रश्नकर्ता : यह कौन तय करता है?
दादाश्री : तय करनेवाला, किसी के हाथ में है ही नहीं यह। यह परिणाम है। परिणाम में तय नहीं करना होता। रिज़ल्ट में तय करना होता है?
प्रश्नकर्ता : अतः जैसे हमारे पिछले कर्म होंगे, उसी अनुसार तय होकर आता है?
दादाश्री : अपने जो कर्म हैं न, उनका सार निकलता है।
प्रश्नकर्ता : शरीर के कितने द्रव्यकर्म भोगने बाकी रहे, वह जाना जा सकता है क्या?
दादाश्री : जितने काले बाल चले गए, वे फिर से नहीं आएँगे अब। वे सब भोग लिए गए। अब ये जो सफेद हैं, वे बाकी बचे हैं। वे जितने भोग लिए जाएँगे, उतने चले जाएँगे। ये दाँत धीरे-धीरे भोग लिए गए, आँखें भोग ली जाती हैं, कान भोग लिए जाते हैं, सबकुछ भोग लिया जाता है। शरीर को भोगता है धीरे-धीरे, त्वचा लटकने लगेगी। ऐसे करते-करते यह मोमबत्ती खत्म हो जाएगी।
__ आयुष्य श्वासोच्छ्वास के अधीन यह सारा जो आयुष्य है वह वर्षों (सालों) के आधार पर नहीं है। आयुष्य श्वास के आधार पर है। इन लोगों ने तो ये वर्ष कैल्क्यूलेशन से निकाले हैं कि सामान्य व्यक्ति के इतने श्वासोच्छ्वास होते हैं, उस पर से कैल्क्यूलेशन करके ये सालों का हिसाब निकाला है। यह श्वासोच्छ्वास...आप जैसा दुरुपयोग करो, यदि चोरी करो तो श्वास अधिक खर्च हो जाएँगे और कुचारित्र में बहुत आयुष्य खर्च हो जाता है। यहाँ पर (सत्संग में) श्वासोच्छ्वास कम खर्च होते हैं न, तो यहाँ पर लंबे समय तक जीते हैं।