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आप्तवाणी-८
आत्मज्ञान ज्ञानी के पास से.... प्रश्नकर्ता : आत्मज्ञान किस तरह से मिलता है?
दादाश्री : आत्मज्ञानी के पास से आत्मज्ञान मिलता है। प्रत्यक्ष' ज्ञानी मिल जाएँ, तो आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
प्रश्नकर्ता : हाँ, लेकिन सच्चे ज्ञानी को किस तरह से पहचाना जा सकता है?
दादाश्री : यदि उन्हें हम छेड़ें तो अहंकार खड़ा नहीं हो, ममता खड़ी नहीं हो, तो वे सच्चे ज्ञानी हैं।
या फिर 'ज्ञानीपुरुष' से पूछना चाहिए कि 'आपका मोक्ष हो गया है'? आपको उनसे ऐसे पूछना चाहिए। तो पता चल जाएगा आपको। यह सब्जी लेने जाते हैं, तो बासी है दो-तीन दिन की या ताज़ी है, ऐसा यदि आपको पता नहीं चले तो आप उससे पूछते हो कि, 'भाई, यह ताज़ा है या बासी है? यह बता।' इसी तरह से आप 'ज्ञानीपुरुष' से पूछो कि 'आपका अगर मोक्ष हो गया हो तो हम आपके पास बैठें, नहीं तो दूसरी दुकान पर जाएँ यहाँ से। एक दुकान पर बैठे-बैठे पूरी ज़िन्दगी बेकार चली जाएगी, इसके बजाय हम दुकान बदल दें।' पूछने में क्या हर्ज है?
बाकी आसान रास्ता तो यह है कि 'ज्ञानीपुरुष' के सत्संग में जाना। नहीं तो एक बार उनका अपमान कर दें, तो पता चल जाएगा कि यह रुपया कलदार है या खोटा है। इस रुपये को ऐसे बजाएँ, रुपये का अपमान करते हैं न? तो तुरन्त पता चल जाता है न, कि यह काट देने जैसा नहीं है, अलमारी में रख दो? और काट देने जैसा हो तो काट दो।
प्रश्नकर्ता : परखने जाएँ तो कर्म बंधेगा?
दादाश्री : नहीं। उस कसौटी करनेवाले को हम रक्षण देते हैं। नहीं तो परीक्षा किस तरह से करेगा? हमारे पास अगर हमारी कसौटी करनी हो, तो हम रक्षण देंगे। आपको गिरने नहीं देंगे और आपकी कसौटी में आप पास हो जाओगे।