________________
आप्तवाणी-८
लोगों को अच्छे रास्ते पर ले जाने के लिए कहा गया था, लेकिन जब उसे उल्टा हो जाए तो उसे खोदकर निकाल नहीं देना चाहिए ? नये फाउन्डेशन नहीं डालने चाहिए?
१८६
वे ऐसे रूपक रखने गए तो यह प्रजा फँस गई, इसके बजाय साइन्टिफिक तरीक़े से उसे 'ज्यों का त्यों' रहने देते तो क्या बुरा था ? गलत है इसमें? कि बीच में इन ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर को लाए !
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, वह कल्पना भी ऐसी बनाकर रख दी है, कि कितने ही वर्षों से यह कल्पना चली आ रही है ।
दादाश्री : और मूल वस्तु मिलती नहीं । उसे फिर मैंने खोजकर अब इन लोगों के सामने रखना शुरू किया है।
I
यानी इन तत्वों की जो अवस्थाएँ हैं न, उनके ये रूपक रखे हैं लोग इन्हें भूल न जाएँ इसीलिए । जब कि लोगों ने जाना कि यही लोग सब चलानेवाले हैं। विष्णु चलाते हैं, फ़लाने चलाते हैं, तो कितने सारे ऊपरी हो गए अपने?
प्रश्नकर्ता : तीन।
दादाश्री : नहीं, नहीं, तीन नहीं, कितने ही । फिर यमराज भी ऊपरी है! जगह-जगह पर ऊपरी !! फिर मनुष्य बेचारा घबरा ही जाएगा न? फिर मनुष्य घबराया हुआ नहीं दिखेगा?
इसीलिए मैंने कहा है न कि कोई बाप भी ऊपरी नहीं है । परेशानी छोड़ो चुपचाप। आपकी भूलें और आपके 'ब्लंडर्स' ही आपके ऊपरी हैं! यह आप नहीं समझे, उसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर क्या करेंगे?
यानी वस्तुओं का स्वभाव है - उत्पाद, व्यय और ध्रौव ! वहाँ पर सिद्धक्षेत्र में सिद्ध भगवानों के लिए यह पूरा जगत् उत्पाद, व्यय और ध्रौव से दिखता रहता है। मूल गुणों से नहीं दिखता । उत्पाद, व्यय और ध्रौव से दिखता है।