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आप्तवाणी-८
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यानी ये इटर्नल वस्तुएँ खुद के गुण और पर्याय सहित हैं, अब ये पर्याय कैसे हैं? तब कहे, 'उत्पन्न होना, विनाश होना । उत्पन्न होना, विनाश होना।' और वस्तु ‘परमानेन्ट' रहती है। 'खुद' जीवित रहता है, हमेशा रहता है, और अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं और उनका विनाश होता है, इसलिए उत्पाद, ध्रौवऔर व्यय कहा है। इन तीनों को इन लोगों ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर कहा है। वह भी लोगों के फ़ायदे के लिए, जब कि लोग समझे अलग और चुपड़ने की जो दवाई थी उसे पी गए । चुपड़ने की पी जाएँगे तो क्या फ़ायदा होगा?
यानी आपको समझ में आया न, ब्रह्मा, विष्णु और महेशा, ये क्या
हैं?
प्रश्नकर्ता : तीन तत्व हैं 1
दादाश्री : नहीं, ये तीनों तत्व भी नहीं है, वस्तुस्थिति में !
यानी कि 'उत्पाद' को इन लोगों ने ब्रह्मा कहा है । 'व्यय' को संहारक कहा है, महेश कहा है और 'ध्रौवता' को विष्णु कहा है । उनके इन लोगों ने रूपक स्थापित किए। उसे खोज मानो न ! अच्छा करने गए, लेकिन फिर बहुत समय के बाद में उल्टा हो ही जाता है न या नहीं हो जाता? इसलिए फिर लोगों ने ब्रह्मा की मूर्तियाँ स्थापित की ।
और इन लोगों ने तो गीता की भी मूर्ति बना दी, गायत्री माता की भी मूर्ति बना दी। कुछ बाकी ही नहीं रखा न ! अरे, लेकिन गायत्री माता की मूर्ति मत बनाना। वह तो मंत्र है, बहुत उत्तम मंत्र है। और इस मंत्र को मंत्र की तरह ही बोलना है, मूर्ति की तरह नहीं भजना है। गीता है, उसे पढ़ना है, समझना है, उसके बजाय गीता की मूर्ति बना दी और उसके पैर छुए ! गीता की मूर्ति के पैर छूने गए, इसलिए कृष्ण भगवान को भूल गए। कृष्ण भगवान एक और रह गए और यह मूर्ति आ गई! इस तरह लोगों ने उल्टा कर दिया !
यानी कि इसके पीछे जो सारा रहस्य था, वह सारा रहस्य मारा गया !