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आप्तवाणी
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प्रश्नकर्ता : ब्रश, टूथपेस्ट सबकुछ रखना चाहिए ।
दादाश्री : हाँ, लोटा, स्टूल, सबकुछ लाओगे न? प्रश्नकर्ता: हाँ।
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दादाश्री : लेकिन मैंने तो आपको सिर्फ दातुन लाने को कहा तब भी आप इतनी सारी चीजें क्यों ले आए? हाँ, यानी कि व्यवहार ऐसा है। बोलते इतना ही हैं, लेकिन आपको सबकुछ समझ लेना चाहिए। यानी व्यवहार को समझना चाहिए। हम सिर्फ ब्रश लेकर कहें 'लीजिए यह ब्रश । ' तो फिर कोई क्या कहेगा, कि 'टूथपेस्ट लाओ, पानी लाओ, फ़लाना लाओ।' उससे फिर गड़बड़ होगी सारी । उसके बजाय तो हम व्यवहार को समझ लें।
यानी व्यवहार में गेहूँ ज़रूर कहते हैं, लेकिन उनमें कंकड़ भी होते हैं। इसी तरह इस व्यवहार में 'सभी आत्मा हैं' ऐसा जो कहा है न, वह इसी तरह कहा है। गेहूँ हैं और कंकड़ उसके साथ में हैं । उसी तरह आत्मा है और अनात्मा भी साथ में है। सब ओर आत्मा है, वास्तव में यह ऐसा नहीं है। लेकिन यह सारी बात समझनी पड़ेगी तो ठिकाना पड़ेगा।
अतः इसका अर्थ लोग उल्टा समझे कि सब जगह आत्मा है, यानी खंभे में भी आत्मा है, दीवार में भी आत्मा है । यानी कि यह सारा उल्टा ही समझे। यानी कि गेहूँ और कंकड़ कुछ भी देखने का ही नहीं रहा। सभी ‘गेहूँ ही हैं' ऐसा कहेंगे, तो उसके लिए हम मना नहीं करते। लेकिन इन व्यापरियों के लिए तो गेहूँ ही हैं। लेकिन खानेवाले के लिए तो गेहूँ और कंकड़ दोनों इकट्ठे ही हैं न? व्यापारियों के लिए क्या है?
प्रश्नकर्ता : गेहूँ ही हैं।
दादाश्री : हाँ, तो ये जितने व्यापारी हैं न, उनके लिए ऐसा है। लेकिन खानेवाले को तो समझना ही चाहिए न ! वर्ना यदि सभी ओर भगवान हैं, तो फिर सच्चे भगवान कब मिलेंगे?
लोग ऐसा समझे कि सभी में आत्मा है, उसका अर्थ ही नहीं न