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आप्तवाणी-८
नहीं है। सर्वव्यापक का अर्थ ऐसा है कि यह लाइट का बल्ब है, यही एक बल्ब है, इस रूम में सब तरफ़ कहीं बल्ब नहीं है, रूम में तो उसका प्रकाश ही है। उसी प्रकार पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशमान कर सके, एक अकेले आत्मा में उतनी शक्ति है। शुद्धात्मा हो जाने के बाद में, बाकी बचे हुए कर्म जब पूरी तरह से डिस्चार्ज हो जाते हैं और जब कर्म रहित हो जाता है, तब पूरे ब्रह्मांड में प्रकाश हो सके, आत्मा की उतनी शक्ति है।
लेकिन इसे इन लोगों ने इस तरह से समझा कि इन सभी में आत्मा है, इसमें आत्मा है, इसमें आत्मा है, उल्टा समझे। चुपड़ने की दवाई पी जाए तो क्या होगा? ऐसा हो गया है यह सारा। उसके कारण न तो बाहर का रोग मिटा, न ही अंदर का रोग मिटा।
यानी जब ऐसा कहते हैं कि 'यह लाइट सब और है', उसका अर्थ हमें ऐसा समझना है कि बल्ब तो वहीं के वहीं हैं, लेकिन उसकी लाइट पूरे रूम में है। हम यहाँ से इस बल्ब को एक घड़े में रख दें और उस पर कुछ ढक दें, तो फिर उसकी लाइट सब और दिखेगी?
प्रश्नकर्ता : नहीं दिखेगी।
दादाश्री : यानी जैसा प्रमेय होगा, उसीके अनुसार प्रमाता होगा। यह प्रमेय इतना ही है, घड़े में बल्ब को रख दें तो घड़े जितना ही प्रकाश फैलेगा, फिर बाहर अन्य कहीं उसका प्रकाश नहीं होगा।
प्रमेय ब्रह्मांड, प्रमाता परमात्मा प्रश्नकर्ता : एक जगह पर ऐसा वाक्य पढ़ा है कि "ज्ञानीपुरुष' के पास बहुत समय तक सत्संग करके प्रमाता, प्रमाण और प्रमेय का स्वरूप समझ लेना चाहिए", तो आप यह समझाइए।
दादाश्री : हाँ। प्रमेय अर्थात्, यह शरीर प्रमेय कहलाता है और यह ब्रह्मांड भी प्रमेय कहलाता है। आत्मा खुद प्रमाता है। अभी आत्मा इस देह में है, तो अभी आत्मा की लाइट कितनी होगी? उसका प्रमाण कितना