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आप्तवाणी-८
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'रियल करेक्ट' है। 'रिलेटिव करेक्ट' यानी विनाशी 'करेक्ट'। वह अमुक कालवर्ती होता है। कोई सौ वर्ष चलता है, कोई पाँच सौ वर्ष चलता है, कोई हजार वर्ष चलता है और कोई पाँच हजार वर्ष चलता है, तो कोई पाँच वर्ष चलता है और कोई एक वर्ष भी चलता है। जो कुछ काल तक टिके, वह सभी 'रिलेटिव करेक्ट' है और जो त्रिकालवर्ती है वह 'रियल करेक्ट'!
अरे, कुछ लोग तो आकर मुझसे कहते हैं कि, 'नहीं, लेकिन जगत् तो मिथ्या ही है न!' तब मैंने कहा, यदि यह मिथ्या होता न तो क्या किसीने रुपये रास्ते पर बाहर फेंके हैं? यदि रास्ते पर घूमने जाएँ तो पैसे मिलते हैं क्या? लोगों के पैसे खोते ही नहीं होंगे न? पैसे खो जाते हैं, लेकिन पैसे वापस मिलते नहीं। यानी यदि जगत मिथ्या होता न तो कोई पैसा लेता ही नहीं! यानी कि जगत् मिथ्या नहीं है, यह तो सत्य ही है। लेकिन 'रिलेटिव' सत्य है, विनाशी सत्य है।
ब्रह्म 'रियल करेक्ट' है, और यह बाकी सब जो आँखों से दिखता है, पंचेन्द्रियों से अनुभव में आता है, वह सब 'रिलेटिव करेक्ट' है! गलत तो कोई चीज़ है ही नहीं इस जगत् में, लेकिन जब तक भौतिक सुखों की ज़रूरत है, विनाशी सुखों की ज़रूरत है, तो इस 'रिलेटिव' सत्य में बैठे रहो और तब तक 'रिलेटिव' में भटकते रहो। और इन भौतिक सुखों के पीछे कितनी सारी चिंताएँ, उपाधि, निरी मुश्किलें मोल लेनी पड़ती हैं। यह सारी तड़फड़ाहट जब मनुष्य अनुभव करता है, तब समझ में आता है कि किस तरह सहन करता है। और अविनाशी सुख चाहिए तो जहाँ पर त्रिकालवर्ती है, वहाँ पर जा। यह 'रिलेटिव' तो 'फॉरिन डिपार्टमेन्ट' है और 'रियल', वह 'होम डिपार्टमेन्ट' है। इसलिए यदि 'घर' जाना हो तो 'घर' जाओ और फॉरिन में रहना हो तो फॉरिन में रहो। बाकी, फॉरिन को 'होम' मानेगा तो उससे तेरे दिन नहीं बदलेंगे।
'सत्' प्राप्ति के बाद, जो 'सत्य' बचा वह...
सत्य और मिथ्या, दो वस्तुएँ तो हैं ही न? या एक ही वस्तु है? अब सत्य का मतलब क्या है, वह आपको समझाता हूँ। क्या नाम है आपका?