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उलझन में भी शांति ! ( ३ )
नहीं होगी या जेब काटे तब भी उलझन नहीं होगी, मारे फिर भी उलझन नहीं होगी, चोट नहीं लगेगी और अन्इफेक्टिव रहा जा सकेगा। यह तो निरी इफेक्ट, इफेक्ट और इफेक्ट । रात को साड़े दस बजे कहा हो कि, 'चाचा, सो जाओ। और चाचा ओढ़कर सो गए, फिर विचार आया कि आज वह एन्ट्री करना रह गया, मुद्दत तो चली गई, तो फिर रात को कितनी देर तक जगता रहेगा? '
प्रश्नकर्ता: पूरी रात ।
दादाश्री : लेकिन क्या हो सकता है फिर ? यह सारी परवशता कहलाएगा, बेचारगी कहलाएगा ! पुलिसवाला झिड़के तब उसे बेचारगी समझ में आती है, या फिर लुटेरों की पकड़ में जाए, ट्रेन खड़ी रखवाकर लुटेरे चढ़ आएँ तब बेचारगी महसूस होती है, ऐसा होता है या नहीं होता? तो यह बेचारगी कब तक पुसाएगी?
जगत् में उलझनें कब मिटेंगी?
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इस जगत् में किसी की भी बात गलत नहीं होती, लेकिन अपने-अपने व्यू पोइन्ट हैं। हमें किसी का गलत दिखता ही नहीं, लेकिन जब उलझन जाए, तब समझ जाते हैं कि यह करेक्ट है I तब तक करेक्ट नहीं कहते किसी को भी । उलझन हमेशा के लिए चली जाए, तब करेक्ट कहते हैं, वर्ना तब तक करेक्ट नहीं कहा जा सकता। फिर भी किसी का भी गलत नहीं है, वह उसका, हर एक का व्यू पोइन्ट है और जब तीन सौ साठ व्यू पोइन्ट पूरे हो जाएँगे, तब उलझनें जाएँगी, नहीं तो उलझनें जाएँगी नहीं । तप करो, जप करो, ध्यान करो, योग करो, लेकिन सभी 'करो, करो' कहते हैं, वे सभी उलझन में डालते हैं।
प्रश्नकर्ता : उलझन में से कैसे निकला जा सकता है?
दादाश्री : यहाँ आओ तो आपकी उलझनें निकाल देंगे, दोतीन दिनों तक आओ तो उलझनों में से बाहर निकाल देंगे। ये डॉक्टर भी ओपरेशन करने से पहले थोड़ा टाइम लेते हैं, दो दिन