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आप्तवाणी-७
मुक्त जीवन कहेंगे ही नहीं न ! वह तो छह दिन मेहनत करके पैसा कमाकर एक दिन मुक्त जीवन रखे, तभी मज़ा आएगा! यानी यह तो मुक्ति पसंद है, यह परवशता पसंद नहीं है। आपको जगत् में ये सब परवशता नहीं लगती ?
प्रश्नकर्ता : परवशता तो निभानी पड़ेगी न?
दादाश्री : तो कब तक निभाते रहोगे ऐसा? पत्नी के साथ निभाना, वह तो समझो कि दोनों में से एक मरेगा तो छूटे, लेकिन यह परवशता कब तक निभाते रहोगे? आप अपने होस्पिटल में रोज़ जाते हो, वह राजीखुशी से जाते हो या परवशता से जाते हो ?
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प्रश्नकर्ता
राजीखुशी से ।
दादाश्री : कभी परवशता से जाना पड़ता है? किसी का विवाह समारोह हो तब बरबस जाना पड़ता है ? विवाह में ऐसा जवाब देते हो कि, 'मेरे सभी पेशेन्ट वहाँ पर बैठे हुए हैं, राह देख रहे हैं? मुझे वहाँ जाना ही पड़ेगा।' ऐसे बरबस वहाँ पर गए हो क्या?
प्रश्नकर्ता : ऐसा शुरूआत में होता था। अब नहीं होता।
दादाश्री : यानी यह सब परवशता है। पूरा जगत् परवशता से ही काम कर रहा है, स्ववश से काम नहीं कर सकते। सभी परवशता से ही काम कर रहे हैं, क्योंकि डिस्चार्ज है। अब उसमें राजीखुशी से करो या एतराज़ उठाकर करो, लेकिन किए बिना चारा ही नहीं। अनिवार्य है सभी। आपको थोड़ा-बहुत भी अनिवार्यतः करना पड़ता है क्या?
प्रश्नकर्ता : ड्यूटी तो करनी पड़ेगी न?
दादाश्री : हाँ, यानी अनिवार्य है न? उलझन नहीं हो, तो समझना कि हम छूट गए, फिर कोई गालियाँ दे, तो भी उलझन