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उलझन में भी शांति ! (३)
दादाश्री : ऐसा है, यह वर्ल्ड इटसेल्फ ही पज़ल है । जिन लोगों की यह पज़ल सोल्व नहीं होती तो वे इस पज़ल में ही डिज़ोल्व हो चुके लोग हैं। हम उस पज़ल को सोल्व कर देते हैं, फिर वह डिज़ोल्व नहीं होता। आपकी यह पज़ल सोल्व करने की इच्छा है क्या?
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पहले कभी पढ़ा नहीं हो, जाना नहीं हो, ऐसा यह अपूर्व विज्ञान है। अतः एक घंटे में सारी पज़ल सोल्व कर देता है। फिर वापस पज़ल खड़ी ही नहीं होती, घंटेभर में ऐसा इलाज कर देते हैं, फिर भय नहीं लगता और संसार चलता रहता है।
उलझनें कौन निकाल कर देगा?
कब तक इन उलझनों में पड़े रहना है? जहाँ देखो वहाँ उलझनें ही खड़ी होती रहती हैं या नहीं?
प्रश्नकर्ता : दस सालों से इसी समाधान की खोज में हूँ, उसे खोजते-खोजते दादा के पास आ गया हूँ।
दादाश्री : यहाँ पर आए तो आपको कुछ हल मिलेगा और ये सारी उलझनें चली जाएँगी। जगत् को उलझनें पसंद नहीं हैं। उसमें, जिसके पास जाएँ वे फिर और अधिक उलझन कर देते हैं, लेकिन उसमें उनका दोष नहीं है। हम समझते हैं कि यहाँ पर हमारी उलझनें कम हो जाएँगी, लेकिन वहीं पर उलझनें बढ़ जाती हैं। अतः यदि उलझनें यदि खत्म हो जाएँ तो हमें शांति रहेगी। नहीं तो शांति कैसे रहेगी ? रुपयों से कहीं शांति नहीं हो पाती। स्त्रियों से यदि शांति मिलती तो चक्रवर्तियों की तेरह सौतेरह सौ रानियाँ थीं, लेकिन वे भी ऊबकर ज्ञानी के पास दौड़ गए। यानी कि लक्ष्मी से या स्त्री से शांति नहीं मिलती। इसके बावजूद यह जगत् असत्य भी नहीं है । जगत् रिलेटिव सत्य है और आत्मा रियल सत्य है। यदि रियल में आ जाएँ तो उलझनें मिट जाएँगी, वर्ना उलझनें नहीं मिटेंगी और तब तक उलझनें खड़ी