________________
आप्तवाणी-७
पार्टनर की झिड़की खानी, इन्कमटैक्स ऑफिसर की झिड़कियाँ खानी, नौकरी में साहब की झिड़की खानी। जहाँ-तहाँ झिड़कियाँ ही खाता रहता है, फिर भी शर्म तक नहीं आती कि 'अरे, इतनी झिड़कियाँ खाकर जी रहा हूँ, वह किसलिए जी रहा हूँ?' लेकिन अब कहाँ जाए? फिर ढीठ हो जाता है!
उलझनों का हल, ज्ञानी के माध्यम से यहाँ पर सभी प्रश्न पूछे जा सकते हैं। आपको उलझन खड़ी नहीं होती? होती है न? तो यहाँ पर उसके सभी खुलासे पूछे जा सकते हैं और फिर हमें उलझनें खड़ी ही नहीं हों, वैसी लाइफ हो जाए तो कितना अच्छा! वह लाइफ कितनी अच्छी कि जिसमें उलझनें खड़ी ही नहीं हों!
प्रश्नकर्ता : उलझनें तो हर एक की लाइफ में होती ही हैं न?
दादाश्री : नहीं, नहीं। हमारे यहाँ पर दस हज़ार लोगों को उलझनें नहीं होतीं। हमें पिछले बाईस सालों से एक भी उलझन नहीं हुई।
प्रश्नकर्ता : मनुष्य की जिंदगी में कुछ न कुछ उलझनें तो होती ही रहती हैं न?
दादाश्री : नहीं, उलझनें हों तो उसे मनुष्य कहेंगे ही कैसे? उलझनवाले मनुष्य को मनुष्य कहेंगे ही कैसे?
प्रश्नकर्ता : उलझनों में भी स्वस्थ मन से सुखी रहना, ऐसा हो सकता है, लेकिन उलझनें तो मनुष्य को होंगी ही न?
दादाश्री : उलझनें नहीं होंगी, तब उसे मनुष्य कहा जाएगा। हिन्दुस्तान का मनुष्य है और अभी तक उलझन में रहा?
प्रश्नकर्ता : उलझन होती है, लेकिन उसमें से हमें रास्ता मिलता है।