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लक्ष्मी की चिंतना (२)
ही कलह करे, लेकिन अपने को तो दर्शन करने पड़ेंगे न! ऐसा यह जगत् है। इसलिए कमी नहीं पड़े और भराव नहीं हो, तो वह सबसे अच्छा।
एक बहन कह रही थीं कि, 'इस साल इतनी अधिक बरसात हो रही है, तो अगले साल क्या होगा? फिर कमी पड़ेगी!' लोग कमी के दौरान भी आशा रखते हैं कि इस साल तो दो-तीन लाख रुपये आ जाएँ तो अच्छा। अरे, अभी के बाद से तो आनेवाले सभी वर्षों में अकाल पड़ेगा! इसलिए आशा मत रखना। लक्ष्मी की बरसात एक साथ हो गई, अब तो पाँच वर्षों तक अकाल पड़ेगा। इसके बजाय यदि वह किश्तों में आए न, तो किश्तों में आने देना ही ठीक है, नहीं तो पूरा धन एकसाथ आएगा तो खर्च हो जाएगा। इसलिए ये जो किश्तें रखी हैं, वह ठीक है। हमें तो, सामनेवाले को संतोष हो वैसा करना है। 'व्यवस्थित' जितनी लक्ष्मी भेजे उतनी स्वीकार कर लेना। कम आए और दिवाली पर दो सौ-तीन सौ कम पड़ जाएँ तो अगली दिवाली पर अधिक बरसात होगी, इसलिए उसमें आपत्ति मत उठाना।
___ नोट रहे, गिननेवाले गए! ___इस लौकिक सुख के बजाय अलौकिक सुख होना चाहिए कि जिस सुख में हमें तृप्ति मिले। ये लौकिक सुख तो अजंपा बढ़ाते हैं बल्कि। जिस दिन पचास हज़ार रुपये की कमाई हो जाए न, तो गिन-गिनकर ही दिमाग़ सारा खाली हो जाएगा। दिमाग़ तो इतना अधिक अधीरतावाला हो जाएगा कि खाना-पीना अच्छा नहीं लगेगा। क्योंकि मेरे पास भी पैसा आता था, वह सब मैंने देखा है कि दिमाग़ कैसा हो जाता था तब! इनमें से कुछ भी मेरे अनुभव से बाहर का नहीं है न? मैं तो इस समुद्र में से तैरकर बाहर निकला हूँ, इसलिए मैं सब जानता हूँ कि आपको क्या होता होगा? अधिक रुपये आएँ, तब अधिक अकुलाहट होती है, दिमाग़ डल हो जाता है और कुछ याद नहीं रहता, अजंपा ही अजंपा